STORYMIRROR

Shivam Antapuriya

Abstract

3  

Shivam Antapuriya

Abstract

अधूरा साथ

अधूरा साथ

1 min
425

जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं

खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं


वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे

छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं


बेवजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे

साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे


हम तो अकेले थे बने रहने देते

अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract