अधिकार
अधिकार
जिसे मिल गया,
वो सुखी रहा।
जिसे न मिला,
वो पछताता रहा।
पूछते-पूछते मैं थक जाऊँगा,
कई वर्ष भी बीत जाएँगे।
हे मनुष्य! इस बात को समझो,
एक दिन दुखों का
काला बादल तुम पर मंडराएगा।
गरीबों को न मिल पाया,
समाज ने छीन लिया।
न मिलता यह किसी काले को,
न मिलता यह नीच जाति वाले को,
बस मिला तो यह सिर्फ
अमीर धनवानों को।
न अधिकार किसी को छूने का,
न अधिकार दुख को मनाने का,
न चैन से ज़िंदगी जीने का,
न हर पल खुशीयों को मनाने को।
तो आइऐ इस गंदे
समाज को मिटाइए,
खुशियों की नई चादर बिछाए,
सबको अपने जीवन को
जीने का अधिकार दीजिए,
और कृपा कर अब तो
अधिकार का अर्थ समझ लीजिए।