अच्छा इंसान
अच्छा इंसान
गिरा ज़रूर हूँ पर संभल जाऊँगा,
ठहर सा गया हूँ आगे बढ़कर दिखाऊंगा।
रोकते हैं जो रास्ते उन पर चल जाऊँगा,
ठान ही लिया है तो कुछ करके दिखाऊंगा।
लड़खड़ाते हैं पाँव मेरे,
कुछ डरा सा मंज़र है।
खिलते नहीं फूल मेरे,
बाग कला का बंजर है।
हिम्मत से डट कर,
उम्मीदों पे खरा उतरना है।
खुद से ही सीख कर,
और ज़्यादा निखरना है।
धूल भरी आँखें भटकती हैं,
सच्चाई के जल से साफ करनी हैं।
पैरों में बेड़ियाँ खटकती हैं,
ख्यालों की चिड़ियाँ आज़ाद करनी हैं।
लक्ष्य बड़ा है,
आसमान को छूना है,
पहाड़ खड़ा है,
पत्थरों को चीरना है।
परिणाम जो भी होगा,
खुद पर दाँव लगाऊंगा।
अनथक प्रयासों से एक दिन,
मैं अच्छा इंसान बन जाऊँगा।
मैं अच्छा इंसान बन जाऊँगा।
