'आजादी '
'आजादी '
हजारों वीरों ने प्राण दी
स्वतंत्रता के लिए जान दी
शत्रु थे, विभिन्न मुल्क थे उनसे
आजाद हो के छुड़वा लिए हमने
अपने हक के सारे रिश्ते l
सालो साल गुजर गये
लेकिन वही लड़ाई बाकी है
आजाद मेरे मुल्क में
गद्दार अभी काफी है l
महानता के मुखौटे अब
गली गली दिखे है
हक के नारे कई सारे
पैरो तले कुचले है l
लड़ाई में बहाये खून की कीमत
आज बड़ी सस्ती है
फांसी के लिए अब डोर नहीं लगती
इनाम ही काफी है l
बंद मुठ्ठी में आज
कई दुर्बलों की जान अटकी है
आजादी की बंदूक अब
खुद पर तानी जाती है
हक मांगते जो उसी पर
सरेआम चलाई जाती है l
अहिंसा का क्या सीखा कर गये गांधीजी?
यहाँ तो कदम कदम पर हिंसा है
दूसरा गाल करो आगे तो गला चीर के रखा है l
नष्ट हो रही है मानवता, भ्रष्ट हो रही है बुद्धि सारी
जिन वीरों के खून से सजी होगी भारत भूमि
उसी को नंगे कर रहे है ये दुराचारी l
ये आजादी, क्या तुम लज्जा से कांप रही हो?
जिस बलिदान से तू मिली उसपर क्या आंसू बांट रही हो?
तू मिली थी बड़ी शान से
पर तुझे हम संभाल ना सके
तेरी कीमत हम जान ना सके l
माफ करना पर तुम यहाँ से जाना नहीं
क्योंकि लड़ाई अभी भी चल रही है
खत्म हुई नहीं, खत्म हुई नहीं......
