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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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आजादी

आजादी

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हाथों की हथकड़ी कटी अब

बेड़ी भी कट जाएगी।

मुक्त गगन पाएंगे तब ही

खुशहाली घर आएगी।


भले पिंजरा सोने का हो

किसे गुलामी भाती है।

बहुमूल्य इज्जत से बढ़कर

बोलो कोई थाती है।


इसीलिए जश्ने आजादी

से बढ़कर त्यौहार नहीं।

मानव मानव नहीजिसे हो

आजादी से प्यार नहीं।


बिना लबों तक आए कैसे

बांसूरी बज पाएगी।

मुक्त गगन पाएंगे तब तो

खुशहाली घर आएगी।


अपना घर अपना होता है

चाहे वो बस छप्पर हो।

मुक्त जहां अरमान उड़ सकें 

ऐसा सपनों का घर हो।


पग पग पर डर जहाँ रहे वो

महल नहीं सुख दे पाते।

जहाँ गर्भ में ही सपनों के

अंकुर सारे मर जाते। 


आजादी की अमर बेल ही

तो घरघर मेहकाएगी।

मुक्त गगन पाएंगे तब तो

खुशहाली घर आएंगी। 


जिम्मेदारी का बोझा पर

आजादी में बढ़ जाता।

कर्तव्यों के पालन से ही

तो जीवन में यश आता।


नई भोर की नई किरण हर

जख्मों को सहलाती है।

"अनंत" ताकत लड़ने की तो

अंदर से ही आती है।


डगर पसीने की ही हमको

मंजिल पर पहुंचाएगी।

मुक्त गगन पाएंगे तब तो

खुशहाली घर आएगी।


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