आजादी का स्वप्निल गणतंत्र
आजादी का स्वप्निल गणतंत्र
आजादी को देख स्वप्न्न में,
मन चंचल हिचकोले मार रहा!
स्वभाव भी मीठा, रंगत भी मीठी,
देख गगन आकर पुकार रहा!
शाम ढलती है, सूर्य की आस में,
गुलामी को स्वातंत्र्य प्रवाह कर रहा!
ध्वनि की आवाज कह रही कानों में,
में ,मेरा देश आज प्रहार कर रहा!
ओंस की बूंदों सी चमक रही आज़ादी,
पर्वतों का समूह हुंकार भर रहा!
सुलभ संस्कृति, शुभ प्रवाह का आंगन में,
क्रीड़ा कर व्याख्यान कर रहा!
हमारी बांहों में है दम जितना,
खून-पसीना अंगार भर रहा!
स्वातंत्र्य पाने को प्रत्येक वर,
भारत की दिव्य महिमा का प्रकाश कर रहा!