आज रात काली है
आज रात काली है


आज रात काली है,
सचमुच बहुत काली है।
चाँद भी नहीं आया, तारे भी डरे है।
भोर जाने कब होगी,
सोच कर सिहरे है।
डोले हैं पीपल की शाखे,
और माटी भी खामोश है।
बोले भी क्या?
सभ्यताएं तो मर गयी हैं।
मर गयी है
उनकी डूबी हुई दुनिया।
कौन देखता है तुझे,
और कौन देखता है
तेरी चौदह कलाओं को।
जा कर देख तो सही,
रात के रुदन को।
महादेव ने कहा था
प्रायश्चित है सब प्रायश्चित,
सब प्रायश्चित...