आज की सोच
आज की सोच
एक सुबह जी में खयाल आया
आज तो दुनिया बदलनी है।
दुनिया को प्यार सीखना है
अपनी मंजिल को पाना है।
लोगों के जज़बातों से मुंह न चुराना है
सब को खुला आसमान दिखाना है।
नयी सोच से भरी मैं आगे बढ़ी
सब को समझते समझाते मैं नासमझ हो गयी
दिन ढला तो सोचा खुद को ही ऊंचा आसमान दिखाते है
दुनिया न सही पर खुद को अपनी सोच सा बनाते है
मैं बढ़ी पर ना उड़ सकी
दोपहर बाद मैंने सोचा -
चलो अपना आसमान किसी और को दिखाते है
खुद ना कर सके तो क्या ?
चलो अपना आसमां किसी और को दिखाते है
