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Prateek choraria

Abstract

4  

Prateek choraria

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आज का डर

आज का डर

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रात को निकली अकेली अब उसे डर लगता क्यों है ?

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?


खुली सड़कें, जुगनू की चमक, पर मैले लोग भी यहां

निगाहें और इंसान भी अब हैवान है जहां

हाथ में किताबों कि जगह तेज़ाब क्यों है ?

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?


अपनी बहनों से रक्षा धागा वो बंधवाता है

फिर दुजी बहनों को क्यों हाथ वो लगाता है ?

इंसान वो बस शक्ल से, कलंक का एक धब्बा क्यों है ?

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है?


पहनावे और लहेजे से एक औरत की पहचान क्यों है ?

कहीं घूंघट में लिपटा तो कहीं खुला समाज क्यों है ?

पहचान जब इंसान की इंसान से होती है यहां, तो

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?


मासूमियत को रौंदने लगे हो हवस के भुखों

दूध पिती बच्ची का यहां बलात्कार क्यों है ?

अपने ही घर में झांक कर देखो एक औरत मिलेगी, फिर

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?


चिल्लाती चीखें, दर्द भरी आहें, सहती ये सांसें क्यों है ?

आंखों में आसूं, खरोचें बदन पर, लब कंपकंपाते क्यों है ?

घर से निकलकर भी बेड़ियों में जकड़ी, सलाखें और बंदिशे, क्यों ?

रात को निकली अकेली अब उसे डर लगता क्यों है ?

पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?


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