आज का डर
आज का डर
रात को निकली अकेली अब उसे डर लगता क्यों है ?
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?
खुली सड़कें, जुगनू की चमक, पर मैले लोग भी यहां
निगाहें और इंसान भी अब हैवान है जहां
हाथ में किताबों कि जगह तेज़ाब क्यों है ?
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?
अपनी बहनों से रक्षा धागा वो बंधवाता है
फिर दुजी बहनों को क्यों हाथ वो लगाता है ?
इंसान वो बस शक्ल से, कलंक का एक धब्बा क्यों है ?
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है?
पहनावे और लहेजे से एक औरत की पहचान क्यों है ?
कहीं घूंघट में लिपटा तो कहीं खुला समाज क्यों है ?
पहचान जब इंसान की इंसान से होती है यहां, तो
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?
मासूमियत को रौंदने लगे हो हवस के भुखों
दूध पिती बच्ची का यहां बलात्कार क्यों है ?
अपने ही घर में झांक कर देखो एक औरत मिलेगी, फिर
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?
चिल्लाती चीखें, दर्द भरी आहें, सहती ये सांसें क्यों है ?
आंखों में आसूं, खरोचें बदन पर, लब कंपकंपाते क्यों है ?
घर से निकलकर भी बेड़ियों में जकड़ी, सलाखें और बंदिशे, क्यों ?
रात को निकली अकेली अब उसे डर लगता क्यों है ?
पहेली सी ये गलियां भुलभुलैया ये रस्ता क्यों है ?