"आह्वान"
"आह्वान"
आओ स्वाभिमान के बल से,
इन थोपी हदों को तोड़ दें,
अब दौर भी बदल गया,
खोखली बंदिशों को छोड़ दे,
पुरुष अभिमान के रण में सदा,
अपमानित नारी ही हुयी,
दुखद खेल चौसर का था जिसमें
लज्जित पांचाली हुयी,
सम्मान की खातिर तुम्हारे,
कोई कभी लड़ा नहीं,
सब मूक दर्शक हैं यहाँ,
कोई साथ में खड़ा नहीं,
ऐ शक्ति आह्वान है तुम्हें,
बल को अपने जान लो,
संघर्ष लम्बा है बहुत,
अपने सामर्थ्य को पहचान लो,
मात्र जानने से अधिकार अपना,
कुछ भी कभी मिला नहीं,
छीन लो हक यदि ना मिले,
पश्चाताप फिर होगा नहीं -2
