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Amaan Iqbal

Abstract

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Amaan Iqbal

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आदम

आदम

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हाय रे आदम क्या कर डाला

आदम तेरा काम निराला


सारा अम्बर स्याह पड़ा है

और ज़मीं है लाल

लहू निकलता अब आँखों से

घूम रहे कंकाल

दूर वो पंछी उड़े गगन में

तुझसे करे सवाल


रे आदम

छीन के खुद से खुद का निवाला

हाय रे आदम क्या कर डाला

दरियाओं से छिनी रवानी

आँख का सूखा पानी

काम, क्रोध और द्वेष बचा बस

और न कोई कहानी


बचपन तेरा फुटपाथों पे

बाज़ारू हुई जवानी

प्रेम के हिस्से आयी फ़क़ीरी

नफरत मालामाल

दूर वो पंछी उड़े गगन में


तुझसे करे सवाल

रे आदम

छीन के खुद से खुद का निवाला

हाय रे आदम क्या कर डाला


लड़ लड़ मरते

कट कट मरते

मर मर गिरते

गिर गिर मरते

दम दम रोते


सब कुछ खोते

है मकड़ी का जाला

छीन के खुद से खुद का निवाला

हाय रे आदम क्या कर डाला।


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