आधुनिक युग की शिक्षाव्यवस्था
आधुनिक युग की शिक्षाव्यवस्था
वर्तमान की इस शिक्षा व्यवस्था का हाल,
कभी लगता है स्वर्ण, कभी लगता है ढाल।
पुस्तकों में हैं ज्ञान की अनमोल छवि,
पर वास्तविकता में खो गई, है यह विचलित धारा।
कभी गाँवों में, हाथ में किताबें लेकर,
बच्चों के सपने, एक नए सूरज के तले
शहर में दौड़ती हैं कोचिंग की गाड़ियाँ,
ज्ञान की बजाय, केवल अंक की होड़ हैं मचियाँ
शिक्षक हैं लेकिन, पथप्रदर्शक कम,
शिक्षा बनी है व्यापारी, विद्या का धन
सोचते हम, क्या यही है कर्तव्य हमारा?
ज्ञान का सरोवर, क्यों बना है सांसरिक व्यापार का नारा?
उम्मीदें हैं जवानों की, सबको मिल जाए सम,
प्रवेश के अंक नहीं, विचार का हो जो क्रम
शिक्षा हो अर्थपूर्ण, न हो केवल पढ़ाई,
हर बच्चे को मिले ज्ञान, यही हो एक सच्चाई
बदलें हम सोच को, बढ़ाएँ नए पंख,
शिक्षा की यह प्रक्रिया, बने सबका संगठित रंग
जीवन की पाठशाला में, प्रेम का हो संचार,
वर्तमान की इस शिक्षा में, लाए नया युग का श्रृंगार
