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इंदर भोले नाथ

Inspirational

1.1  

इंदर भोले नाथ

Inspirational

"9:45 की लोकल"

"9:45 की लोकल"

8 mins
700


ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ, मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है।


मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन। छोटा सा स्टेशन है, लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपेज है। मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा,


“सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है। स्टेशन मास्टर ने बताया दोपहेर 2:45 पर 1 एक्सप्रेस है। वो भी 1 घंटा देर से है। 10 बजने वाला था, तकरीबन 6 घंटे मुझे ट्रेन केलिए इंतेजार करना पड़ेगा। रेलवे स्टेशन से तकरीबन 100 मीटर की दूरी पर है, बस स्टैंड। मैने सोचा चलो देखते है शायद कोई बस मिल जाए बनारस के लिए। वहाँ जाकर पता चला के बनारस के लिए सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे ही बस मिलती है। वापस रेलवे स्टेशन आकर मैं एक पेड़ के नीचे चबूतरा सा बना हुआ था, जहाँ 3 बुजुर्ग जो वहीं आस-पास के रहने वाले थे। बैठे बाते कर रहे थे, मैं भी उन्ही के बगल में जाकर बैठ गया।


अभी 15-20 मिनट ही गुज़रे होंगे, तभी 1 औरत जिनकी उम्र तकरीबन 50-55 साल की होगी, उन्होने मुझे हाथ से इशारा कर के बुलाया। मैने सोचा किसी और को बुला रही हैं, मैने ध्यान नहीं दिया। दुबारा फिर उन्होने बोला "बेटा ज़रा यहाँ आना"। मैने सोचा यहाँ मेरी उम्र का कोई और तो दिख नहीं रहा, शायद मुझे ही बुला रही है। पर मैं तो इन्हे पहचानता नहीं? हो सकता है ये मुझे पहचानती हो, ये सोचकर मैं उनके पास गया।


“माफ़ कीजिएगा मैने आपको पहचाना नहीं क्या आप मुझे पहचानती है?” मैने पास जाकर ये पूछा। उन्होने कहा बेटा मैं फलां गाँव की रहने वाली हूँ, मेरे दो बेटे हैं। बड़े बेटे की शादी हो गयी है। उसके दो लड़के, 1 लड़का, 1 लड़की है। दिल्ली में अपने बीबी और बच्चों के साथ रहता है। दूसरा बेटा तुम्हारी ही उम्र का है। 3-4 दिन हुए वो भी भाई के पास दिल्ली गया हुआ है। मुझे झुंझलाहट सा महसूस हुआ। मैने कहा,


“माँ जी आपने मुझे ये सब बताने के लिए यहाँ बुलाया”,


“नहीं बेटा वो मैं अपने पति के लिए दवा लेने आई थी। उनकी दवा यही से चलती है, दवा लेके मैं ऑटो से बस स्टैंड आ रही थी। मेरे पास 1 थैला था जिसमें कुछ समान थे। ऑटो वाले को किराया देकर मैने पैसे वाला बेग उस थैले में रख दिया। जब मैं ऑटो से उतरी वो थैला ऑटो में ही छूट गया। जब मैं बस स्टैंड आई फिर मुझे ध्यान आया, वापस जाके देखा ऑटो वाला वहाँ नहीं था। बेटा मेरा घर यहाँ से तकरीबन 25 किमी दूर है। मेरे पास पैसे नहीं हैं 35 रुपया बस का किराया लगता है, बेटे अगर तुम्हारे पास पैसे हो तो मुझे 35 रुपया दे दो। जिस डॉकटर के यहाँ से दवा चलता है वहाँ जाने के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं है”

 


पहले मुझे लगा झूठ बोल रही है, फिर सोचा कपड़े तो अच्छे पहने है, और देखने में भी सीधी- साधी और सभ्य औरत मालूम हो रही थी। एक हाथ में पोलिथीन का बेग था जिसमें टैब्लेट्स और कुछ कैप्सूल्स दिख रहे थे। मैने पर्स से 50 रुपया निकाला और उनकी तरफ बढ़ाया, उन्होने कहा “बेटा मुझे सिर्फ़ 35 रुपया दे दो”,


“मैने कहा माँ जी रख लो मेरे पास खुले नहीं है”,


पैसे लेते हुए बोली “बेटा सुखी रहो भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे”, फिर उन्होने ने अपने घर का पता बताया और बोली “बेटे कभी उधर आओगे तो मुझसे ज़रूर मिलना”


मैने कहा “ठीक है माँ जी”,


फिर वो बस स्टैंड की ओर जाने लगी, फिर मेरे दिमाग़ में ग़लत ख्याल आया। मैने उसका पीछा किया के कहीं झूठ तो नहीं बोल रही। फिर मैने देखा वो बस स्टैंड की तरफ गयी और एक बस में चढ़ गयी। मुझे अपने आप पे बड़ा गुस्सा आया, फालतू में मैने शक किया। फिर मैं वापस स्टेशन में आया और ट्रेन का इंतेजार करने लगा, 3 बज़कर 50 मिनट पर ट्रेन आई। टिकट तो मैने पहले ही ले रखा था। रात को 9 बजे मैं बनारस पहुँच गया, पूरी रात स्टेशन पर ही रहा। सुबह 9:30 बजे था, मेरे इंटरव्यू का टाइम। मैं 9 बजे ही पहुँच गया, मुझे नौकरी मिल गयी। मैने अपना रिज्यूमें नौकरी.कॉम पे डाल रखा था, वही से इंटरव्यू के लिए कॉल आया था।


2 साल बाद मेरे एक दोस्त की शादी थी, जो मेरे साथ ही काम करता था। बस से उतरने के बाद ऑटो द्वारा मैं दोस्त के घर की तरफ जा रहा था। तभी उसी ऑटो में जिसमें मैं बैठा था, दो औरत चढ़ी। एक की उम्र तकरीबन 50-55 के करीब होगी और दूसरी 20-25 साल की होगी। उसकी गोद में एक बच्चा भी था, जो 2-3 महीने का होगा। ऑटो चलने लगी तो वो बूढ़ी औरत बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी। जब मैं उसकी तरफ देखा तो जैसे वो मुझे जानती हो। वैसे मुझे देखकर हँसने लगी, मुझे अजीब सा लगा। मैने ध्यान नहीं दिया, फिर देखा वो मेरी तरफ ही देख रही थी। मैं पूछने ही वाला था के क्या आप मुझे जानती है? तभी उसने कहा “बेटा तुम वही हो ना जिसने मुझे 50 रुपये दिए थे, जब मेरा पैसे वाला थैला, ऑटो में छूट गया था”


जैसे ही उन्होने ये बात कही मुझे याद आ गया, फिर मैने कहा "वो आप ही है”


उन्होने कहा “हाँ बेटा वो मैं ही हूँ, ये मेरी बहू है दूसरे लड़के की पत्नी”

मैने कहा “वही जो दिल्ली नौकरी के लिए गया था”


बोली हाँ उसी की पत्नी है, और ये उसका बेटा है। इसी को लेकर डॉक्टर के पास गयी थी, हल्का सा बुखार है”


बहुत सारी बातें हुई। मेरे बारे में पूछा क्या करते हो? मैने बताया अपने बारे में के 2 साल से नौकरी कर रहा हूँ, बनारस मे। जिस दिन आप मुझे स्टेशन पे मिली थी न उस दिन मैं बनारस ही जा रहा था, इंटरव्यू के लिए। बस गया और आपकी कृपा से नौकरी लग गयी। वहीं 2 साल से नौकरी कर रहा हूँ। फिर उन्होने अपने घर चलने को बहुत जिद्द किया। मैने कहा “माँ जी मेरे दोस्त की शादी है, उसी के घर जा रहा हूँ। जो फलां गाँव में पड़ता है”,


उन्होने बताया जिस गाँव में जा रहे हो, वहाँ से हमारा गाँव 4 किमी दूर है। कल शादी बीत जाए, परसों हमारे घर ज़रूर आना बेटे। मैने कहा ठीक है माँ जी, मेरा स्टेशन आने वाला है, मैंने कहा “ठीक है माँ जी मैं चलता हूँ”,


उन्होने अपने बैग से 500 रुपये का निकाला और मेरे पॉकेट में डालने लगी। मैने बहुत मना किया, पर वो नहीं मानी। बोली “रख लो बेटा तुम मेरे बेटे जैसे हो और मेरे पॉकेट पैसा डाल दिया”


मै वो पैसा पॉकेट से निकाल कर बच्चे के हाथ में रखने लगा। उनके मना करने पर मैने कहा “जब मैं आपके बेटे जैसा हूँ तो आपका बेटा मेरे भाई जैसा हुआ, और उसका बेटा मेरा भतीजा हुआ, इसलिए ये पैसा मैं अपने भतीजे को दे रहा हूँ” ये कह कर पैसा मैने बच्चे के हाथ में थमा दिया। उन्होने कहा “ठीक है, लेकिन परसों तुम हमारे यहाँ ज़रूर आना बेटा। हम तुम्हारा इंतजार करेंगे, और अपने बहू को बोली की बहू अपना मोबाइल नम्बर दे दो इनको”,


मोबाइल नंबर मैने लिख लिया, फिर मैं ऑटो से उतर गया। दोस्त के घर पहुँच गया। अगले दिन शादी बीत जाने पर, मैं और मेरा दोस्त उस गाँव में गये, पता पूछते हुए पहुँच गये। आगे बड़ा सा दालान था, उस दालान से ही सटे पीछे की तरफ तकरीबन 10-12 घर थे। चारो तरफ से बाउंड्री दिया हुआ था, बड़ा सा लोहे का गेट लगा हुआ था, गेट खुला था। हम अंदर चले गये, बाइक खड़ा कर के दालान में गये, साइड के एक कमरे में तकरीबन 60-65 साल के एक बुजुर्ग बैठे थे। हमें देख के वो कमरे से बाहर आए और हमें बैठने का इशारा किया। दालान में 7-8 कुर्सिया रखी हुई थी, हम बैठ गये। फिर वो घर की तरफ आवाज़ लगते हुआ बोलें "मनोज" (शायद उनके बेटे का नाम हो) दो लोग आए है, मीठा और पानी लाना। अंदर से एक लड़का आया जो मेरे ही उम्र का था। आया हमें देख कर फिर अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद एक प्लेट में 4 लड्डू, एक जग में पानी और 2 गिलास लेकर बाहर आया। लड्डू हमारे पास रख के गिलास में पानी डालते हुए बोला पानी पीजिए। हम पानी पीने लगे, फिर वो अंदर की तरफ आवाज़ लगाते हुए बोला माँ चाय बनाना।


हमारे पानी पीने के बाद हमसे पूछा “कहाँ से आए हैं, आप लोग और किससे मिलना है?”


मैने कहा “जी मेरा नाम "इंदर" है, वो माँ जी से मिलना था”


“इंदर ? कहीं आप आप वो तो नहीं जो रेलवे स्टेशन पर मेरी माँ से.....!”


मैने कहा “जी मैं वही हूँ”,


फिर क्या था, इतना सुनना था के उसने मुझे गले लगा लिया, बोला बहुत-बहुत धन्याबाद भाईसाहब, और फिर भागता हुआ अंदर की तरफ गया।


अंदर की तरफ से वो ही औरत आईं,


“नमस्ते माँ जी"


“खुश रहो बेटे आओ अंदर आओ”, और हमें अंदर ले गयी, बहू फटाफट दो खाना लगाना”,


हमने मना किया, माँ जी हम खाना खा के आए है, पर वो हमारी एक न सुनी। खाना लग गया, खाना खाने के बाद 2 घंटे तक हम बाते करते रहे। जिस तरह से वो पूरा परिवार हमारे साथ बर्ताव कर रहे थे, लग रहा था जैसे मैने उन पर बहुत बड़ा एहसान किया हो। उस दिन मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था। साथ ही उस दिन मुझे एक बात का एहसास हुआ, के चाहे इंसान कितना ही पैसे वाला क्यों ना हो पर "मजबूरी हर इंसान को मजबूर कर देती है"। तभी तो वो औरत मुझसे मात्र 35 रुपये माँगने पर विवस हो गई थी। जिसके घर और खेतों में 100 रूपये रोजाना काम करने वाले न जाने कितने मजदूर काम कर रहे थें।


हमारे बहुत कहने बाद उन्ह लोगों ने हमें जाने की इजाज़त दी, मनोज गाँव के बाहर तक हमें छोड़ने आया। मेरा मोबाइल नंबर लेते हुए बोला “भाई साहब कभी भी कोई काम हो, या किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े बस हमें एक कॉल कर देना। हमें बहुत खुशी होगी, के हम आपके कुछ काम आ सकें”


अपना नंबर भी हमें दिया, फिर वहाँ से हम चल दिए। उस दिन दोस्त के घर ठहरा, अगले दिन अपने घर आ गया।



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