खट्टी मीठी यादें
खट्टी मीठी यादें
बात दो दशकों से भी पुरानी है। ईश्वर का आशीष और माता-पिता के पुण्य कर्म से मुझे कॉलेज के द्वितीय वर्ष में ही जीवन बीमा निगम में नौकरी मिल गयी और मैं जबलपुर से भोपाल शिफ्ट हो गई। नौकरी के साथ एकाउंट्स पढ़ना थोड़ा मुश्किल था, सो मैने मैनेजमेंट विषय के साथ ग्रेजुएशन किया। बहुत कम पढ़ने पर भी मैं थ्योरी विषय में कम से कम 8-10 सप्लीमेंट्री भर लिया करती तो मेरी सहेलियाँ बहुत आश्चर्य करती कि वो सब तो साल भर रेगुलर क्लास अटेंड करने के बाद भी इतना नहीं लिख पाती और ताज्जुब वाली बात होती, जब उन सभी कॉलेज की रेगुलर स्टूडेंट सहेलियों से मुझे ज्यादा नंबर मिला करते। मेरी सहेलियां कहती कि पता नहीं कौन सा पुराण लिख देती हो कि क्लास में टॉप कर लिया करती हो। वे सब मुझे ‘’फेकोलॉजिस्ट’’ कहकर चिढ़ाया करती।
घर–परिवार से बाहर रहने के कारण माता-पिता को मेरी चिंता हुआ करती और इसी के चलते जल्द ही मेरा रिश्ता जीवन बीमा निगम में ही कार्यरत् लड़के से तय हो गया और 21 साल के कम वय में घर-गृहस्थी और नौकरी के साथ मेरी रोबोटिक जिंदगी का चक्रव्यूह शुरू हो गया।
24 साल के वय में मैं एक बेटी की माँ बन गयी। पति अक्सर टूर पर रहा करते, सुबह 06;00 बजे जाते और रात 9-10 बजे वापस आते। घर-परिवार और बच्ची के सभी कामों की जिम्मेदारी मुझ पर ही थी। एक साल तो बेटी की सेवा में यूँ ही गुज़र गया।
पर डेढ़ वर्ष की मेरी नन्हीं बेटी के खौलते दूध से जलने की घटना ने मेरे मातृत्व भरे हृदय को तार-तार सा कर दिया था। अपने मन के दर्द को अंतस में और आँखों की पलकों के पीछे समेटे, फूल सी कोमल बच्ची की असह्य वेदना को कम करने के लिए ना जाने कैसे मैं नित नई बाल कहानियाँ और कविताएँ रच-रचकर उसका मन बहलाने का प्रयास किया करती। क्षण भर के लिए वह अपना दर्द भूलकर कभी भालू वाली तो कभी बंदर वाली कहानी सुनाने को कहा करती। कहते हैं ना कि जीवन के सबसे जटिलतम समय में ही व्यक्तित्व सबसे उजला पक्ष निखरकर बाहर आता हैं। मेरी बेटी अंतरा के इलाज के दो साल का दौर भी ऐसा ही कुछ रहा।
अंतरा को देखने, हमसे मिलने आये लोगों की विविध टिप्पणियों और हिदायतों को मैने कहानी का रूप देकर डायरी में संजोया। बेटी के साथ हुई दु:खद घटना ने अपने आस-पास के लोगों की मनोवृत्ति पर मंथन करने, विविध रिश्तों के बीच नरम-गरम होती प्यार की गर्माहट का आँकलन कर किस्सागोई करने सुप्त शक्ति को चैतन्य किया।
दो वर्ष के लंबे इलाज के बाद मेरी बेटी काफी हद तक ठीक हो गई। स्कूल भी जाने लगी, अंतरा के स्कूल शुरू होते ही मेरी दिनचर्या में भी काफी बदलाव आ गया। मुझे अंतरा को स्कूल में भेजने के लिए मुझे दौड़-दौड़ कर रोबोट जैसे काम करना होता था। अपना एनर्जी लेवल बनाए रखने के लिए मैं सुबह से ही बिग एफ,एम, रेडि़यों लगाया करती क्योंकि उसमें मेरे मनपसंद पुराने गीत प्रसारित हुआ करते थे। मैंने गौर किया कि सुबह आठ बजे और दस में दो कॉन्टेस्ट आया करते जिसमें आर,जे, द्वारा पूछे प्रश्न का मज़ेदार जवाब देना होता और फिर सबसे बढि़या जवाब देने वाले को आर,जे, बढि़या-बढि़या गिफ्ट दिया करते। मैंने भी इसमें पार्टिसिपेट करना शुरू किया और कई पुरस्कार जीते। इससे मेरी कल्पनाशीलता बहुत विकसित हुई और मैंने अपने लेखों में छोटी-छोटी प्रेरक कहानियाँ बनाकर अपने ऑफिस की पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु प्रेषित करना शुरू किया।
हमारे एलायशियन सहकर्मियों को मेरे लेख पसंद आते तो वो मुझे फोन पर या मेल पर बधाइयाँ देते। जिससे मेरा उत्साह बढ़ता चला गया। ऐसे ही एक बार बिग एफ,एम, में ‘’हीरो ख्वाबों का सफ़र’’ कहानी प्रतियोगिता की घोषणा हुई। इसमें बेटियों की शिक्षा और आत्मनिर्भर बनाने का संदेश देते हुए कहानी लिखनी थी। हालांकि मैंने इतने बड़े स्तर पर कभी कोई कहानी नहीं लिखी, फिर भी यह सोचकर कि लिखने में क्या जाता हैं, यदि नहीं सिलेक्ट हुई तो पुरस्कार नहीं मिलेगा और इससे ज्यादा कुछ होना नहीं था, मैंने कहानी लिखकर लिंक पर पोस्ट कर दी। हालांकि बहुत ज्यादा उम्मीद तो थी नहीं क्योंकि प्रतियोगिता ऑल इंडिया लेवल की थी, नीलेश मिश्रा, आर जे कहानी का चयन करने वाले थे। इसीलिए मेरे लिए इस प्रतियोगिता में जीतने की संभावनाएँ अत्यंत क्षीण थी।
कहानी पोस्ट करके मैंने इस बात को अपने दिमाग से लगभग निकाल बाहर किया था क्योंकि लेखन के क्षेत्र में मैं एकदम नौ-सिखिया ही थी। एक दिन अचानक एक फोन आया और बोलने वाले ने बताया कि वह मुंबई से बोल रहा हैं और मेरी कहानी का चयन हो गया हैं, मेरी कहानी ‘’हीरो ख्वाबों का सफ़र’’ प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर रही। नीलेश मिश्रा जी ने मेरे प्रयास को सराहा हैं और बधाई दी है। सुनकर मेरे तो पाँव जमीं पर ही नहीं पड़ रहे थे, इतनी बड़ी उपलब्धि की मैंने अपने जीवन में कल्पना भी नहीं की थी। मेरी कहानी रेडि़यो पर प्रसारित हुई और मुझे हीरो प्लेज़र स्कूटी पुरस्कार में मिली। जिसे मैंने अपनी प्यारी बिटिया अंतरा को गिफ्ट किया क्योंकि वो उसको चलाने लायक हो गई थी और मेरी इस सफलता की काफ़ी हद तक वो हकदार भी।
अब मेरा अपने लेखन को और अधिक परिष्कृत करने का उत्साह और जज़्बा नव क्षितिज़ पर था। मैंने मुंबई स्थित अपने कार्यालय की ऑल इंडिया लेवल वाली बहुप्रतिष्ठित पत्रिका में लेख भेजने का भी निश्चय किया और इसके लिए ऑफिस की लाइब्रेरी से पुस्तकें लेकर महीना भर अध्ययन किया और एक बेहतरीन लेख तैयार किया ‘’सफलता के सूत्र’’ और ईश्वर का नाम लेकर उसे मुंबई भेज दिया। 15 दिन बाद मुंबई से मेरे लेख के चयन होने की खबर आई तो मेरी आँखों से खुशी के आंसू ही छलक पड़े क्योंकि उक्त पत्रिका में पूरे भारत भर से केवल 9 लेखकों के श्रेष्ठ लेख ही प्रकाशित होते हैं।
मेरी लेखनी को पुन: नये आयाम मिले। अब मैं समय प्रबंधन और दूरदर्शिता से अपने दैनिक कामों को कम समय में निपटाकर अधिकतम समय पठन-पाठन में व्यतीत किया करती। अच्छे और प्रेरक लेखकों की पुस्तकें पढ़ा करती। उनकी पुस्तकों में प्रकाशित अच्छे वाक्य, कोट्स अपनी डायरी में नोट किया करती। अब मेरी बेटी भी मुझसे पूछा करती कि क्या नया लिखा है। उसका उत्साह देख में बेहद प्रसन्नता महसूस किया करती। इस सारी कवायद में मेरे पति मेरी लेखनी के प्रथम पाठक और आलोचक हुआ करते। हालांकि मेरा हर प्रयास सफल नहीं हुआ। कई बार मेरे लेख चयनित होने और कुछ एक लोगों की नकारात्मक टिप्पणियाँ मेरे मन को आहत कर जाती पर मन से जुडे मित्रगण और मेरे पति मेरी हौसला अफ़जाई कर लेखन कार्य जारी रखने हेतु सतत् प्रोत्साहित किया करते और मेरा मनोबल बढ़ाते।
इसी बीच आलेख और कहानी लेखन के साथ ही अंदर छिपे लेखिका के मन में विचार कौंधा कि क्यों ना अपनी लेखनी को बड़ा रूप देकर पुस्तक लिखने का प्रयास किया जाये। हालांकि स्वप्न कुछ ज्यादा ही बड़ा था, बहुत अधिक धैर्य और मेहनत की आवश्यकता थी पर इस विश्वास के साथ कि जब ईश्वर ने लेखन के क्षेत्र में इस मुकाम पर लाकर खड़ा किया हैं तो आगे भी आशीष बनाये रखेगा, और मैं अपने जीवन के इस महती सपने को पूरा करने में जुट गई। मैं किसी ऐसे विषय पर लिखना चाहती थी जिस पर अभी तक कोई पुस्तक प्रकाशित न हुई हो। हालांकि यह एक चैलेंज ही था पर मैंने जिस विषय का चयन किया था उसमें मुझे मेरे पति के मार्गदर्शन की अत्यंत आवश्यकता थी क्योंकि मेरे पति नेशनल लेवल के चेस प्लेयर रहे हैं। मैंने विचार किया कि क्यों ना शतरंज खेल के नियमों से मिलने वाली सीखों से मानव के सफल होने के सूत्रों वाली सच्ची घटनाओं को को-रिलेट कर एक प्रेरक, मनोरंजक पुस्तक की रचना की जाये। लगभग चार वर्षो के अनवरत् प्रयासों का ही नतीजा था कि विगत वर्ष 2017 में मेरी पहली पुस्तक ‘’शतरंज और जीवन प्रबंधन’’ का प्रकाशन हुआ और मेरी इस प्रथम रचना के लिए जानी-मानी लेखिका सुश्री मालती जोशी के आशीर्वचन का उपहार मिला।
उक्त पुस्तक के लिए नाम-चीनी लेखकों से भूरी-भूरी प्रशंसा सुन मेरा उत्साह था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी इस सफलता के लिए मैं अपने पति की शुक्रगुज़ार हूँ। जिन्होंने खेल की नियमावली की बारीकियों से मुझे अवगत कराते हुए पुस्तक को लिखने हेतु मेरे उत्साह को बलवती रखा। मेरी सखी जो कि बहुत सुंदर पेंटिंग करती हैं, उसने मेरी पुस्तक का मुख्य प़ष्ठ डिजाइन किया। उसको भी मैने तहेदिल से धन्यवाद दिया।
इसी बीच भोपाल के लेखिका संघ की मेरी साथी लेखिकाओं से ज्ञान हुआ कि यदि हम प्रेरक, शिक्षाप्रद कहानी लिखें तो जाने-माने स्टोरी टेलर या आर जे हमारी कहानी को अपनी आवाज़ देकर यू-ट्यूब पर प्रसारित करते हैं। अब मेरे लिए एक नया लक्ष्य था सो मैं कहानी की भूमिका तैयार करने में व्यस्त हो चली थी।
चूंकि मैने अपनी शादी की पिछली शादी की सालगिरह पर आर्गन डोनेशन का रजिस्ट्रेशन फार्म भरा था और इस पुण्य कर्म में अधिकाधिक लोगों को जोड़ना चाहती थी और इस हेतु को सार्थक करने के लिए कहानी को बेहतरीन माध्यम बनाकर मैंने अपनी पहली कहानी ‘’मेरे प्यारे पापा, मेरे आदर्श’’ लिखी और मेरे पसंदीदा आर,जे, अमितजी को भेजकर उनकी बेशकीमती आवाज़ मेरी कहानी को देने का आग्रह किया। मेरी कहानी को पढ़कर भावविभोर होते हुए पहली ही बार में उन्होंने मेरा अनुरोध स्वीकार किया और कहानी को नेरेट कर यू-ट्यूब पर प्रसारित किया। कहानी के श्रोताओं ने कहानी के अंत में अंगदान संबंधी जानकारी मिलने पर लिंक पर टिप्पणी लिखकर धन्यवाद दिया और कुछ श्रोताओं ने अंगदान की मुहिम को आगे भी बढ़ाया। यह सब जानकर लगा कि मेरी लेखनी सार्थक हो गई।
इस बीच मैने महसूस किया कि कहानियों में अपने आस-पास घटित होने वाले मुद्दों और घटनाओं का जिक्र पाठकों और श्रोताओं के दिल को छू जाता हैं इसीलिए मैने अपनी कहानियों में सच्ची घटनाओं के आसपास कुछ पात्रों की रचना कर ऐसे चरित्र निर्मित किये जिन्हें पढ़-सुनकर यूँ लगता जैसे ये हम सबके साथ हो रहा हो और कहानी मन-मस्तिष्क में घर कर जाती, उस पर आर,जे, अमित जी की आवाज जादू की छड़ी सा काम कर रही थी।
अपनी इस सफलता के तारतम्य को बरकरार रखते हुए मैंने आगे हमारे समाज की विविध कुरीतियों का निवारण, ‘’विधवा पुनर्विवाह’’, नारी सशक्तीकरण, रक्तदान और देने का सुख जैसे विषयों पर 35 से अधिक कहानियाँ लिखी जिसे ‘’कहानियों का सफ़र’’ में अमित जी की मोहक आवाज़ में आप सभी सुन सकते हैं।
इसके साथ ही विगत 6-8 महीनों से स्टोरी मिरर पर मेरी 5-6 कहानियां प्रसारित हुई और मैंने पाया कि इतने कम समय में मेरी कहानियों को 18-20 हजार लोगों ने पढ़ा, कुछ ने सराहा भी । इस समूह से जुड़कर मेरी लेखनी संपूर्ण विश्व में प्रसारित और प्रचारित हो रही है। एक लेखक या लेखिका के लिए उसकी लेखनी को नये आयाम देने हेतु इससे बेहतर मंच शायद ही कोई और हो।
लंबी कहानियों की सफलताओं के साथ ही अमितजी ने एक बार जिक्र किया कि हमारे देश-समाज में चाय का बहुत अधिक चलन हैं। कोई भी बात हो हम अक्सर कहा करते हैं कि ‘’आइये, साथ चाय पीते हैं’’ ‘’शाम में आइयें, एक चाय हो जाये, यहां तक कि गाना भी फेमस हैं ‘’मम्मी ने मेरी चाय पे बुलाया हैं’’ तो क्यों ना हम ‘’टी टाइम स्टोरी सीरिज़ तैयार करें जिसमें कि किसी समस्या के समाधान, आपसी मेलजोल या बनते-बिगड़ते रिश्तों को सांझा किया जाये।
सो मैने अपनी पहली कहानी ‘’मार्च-क्लोजिंग’’ पर पिछले साल लिखी, जिसमें अपने ऑफिस के अनुभवों को सांझा करते हुए कुछ सीख देने का प्रयास किया और अब तक 6 टी टाइम स्टोरीज कहानियों के सफ़र में यू-ट्यूब पर प्रसारित हो चुकी हैं। नित नये रचनात्मक सुझावों के लिए मैं अमित जी की भी आभारी हूँ।
आप सभी श्रोताओं-पाठकों से मिले प्रोत्साहन के मद्देनज़र मेरी लेखनी का सफ़र मेरी अंतिम साँस तक जारी रहे, यही ईश्वर से प्रार्थना हैं ।