मेरे प्‍यारे पापा, मेरे आदर्श

मेरे प्‍यारे पापा, मेरे आदर्श

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अरे हमारी लाड़ली बिटिया, हमसे रूठ गई हैं, देखो तुमको मनाने ये सेंटा क्‍लॉज आया है, जो मांगोगी, तुम्‍हारी हर विश पूरी करेगा, अरे अब मान भी जा मेरी लाड़ो । कहते हुए मेरे पति ने रिनि को गोद में उठा लिया ।

रिनि खुश हो गई और उसने कहा – हां तो मेरे सेंटा, अब मेरे लिए घोड़ा बन जाओं मैं आपकी पीठ पर बैठूंगी, फिर पीठ पर बैठाकर बरामदे तक ले जाकर वापस लाना । अब यदि मेरा कहना नहीं माना तो मैं आपसे फिर नाराज़ हो जाऊंगी ।

अरे ना मेरी परी, अब कभी नाराज मत होना, आ जा मेरी पीठ पर बैठ जा, और ये चली घोड़े की सवारी, मेरी रानी बिटिया की ।

किचन में नाश्‍ता बनाते-बनाते मैं अपने पति और बिटिया की बातें सुन रही थी, वैसे ये हर रविवार का किस्‍सा होता हैं, सप्‍ताह भर के बिज़ी शेड्यूल के बाद जब पति छुट्टी पर होते, रिनि अपने सारे नाज़-नखरे उनसे उठवाया करती । पति भी रिनि की सारी फरमाईशें पूरी करते नहीं थकते, वे उसे दिलों-जां से प्‍यार किया करते ।

सच एक बिटिया के लिए उसके पापा दुनिया के सुपरमैन होते हैं, जो उसकी हर फ़रमाईश पूरी करें, उसे सर-ऑखों पर बि‍ठाएं रखें, उसकी मान मनौवल पूरी करता रहे । और सच भी हैं, जहां एक ओर पापा के चौड़े-मज़बूत कांधे अपने बच्‍चे को हर परिस्थिति में उनका साथ देते हैं, वहीं दूसरी ओर ऑखों के बाहरी सख्‍त हाव-भावों के पीछे छिपे प्रेमभाव अपने ह़दय के टुकड़ों के प्रति बेइंतहां प्‍यार की दास्‍तां बयां करती हैं ।

मम्‍मा, ये देखों मेरी सवारी... - कहते हुए रिनि अपने पापा से पीठ पर सवार होकर किचन के सामने से होकर बरामदे की ओर जा रही थी । उसकी आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई । डायनिंग टेबल पर नाश्‍ता लगाते मैने दोनों को आवाज़ लगाकर बुलाया ।

हमने नाश्‍ता किया उसके बाद मेरे पति रिनि को साइकल चलाना सिखाने के लिए लेकर गए । रिनि साइकल से गिरने से ड़र रही थी तो ये बोले- ‘’मैं हॅू ना तुम्‍हारे साथ, तुम नहीं गिरोगी । यदि गिर भी गई तो कोई बात नहीं, गिरोगी तभी तो उठकर फिर साइकल चलाना सीखोगी । गिरने से कभी मत ड़रना ।

सच इन दोनों के बीच बातचीत सुनकर अपने बचपन के दिनों को याद कर मन में एक टीस सी उभर आती और यादों का धुंधलका छंटने सा लगता ।

ऑफिस की जिम्‍मेदारियों के चलते वैसे तो पापा घर में कम ही मिलते, पर वे हमारे साथ जितने भी समय होते, घर उनकी उपस्थिति में गुलज़ार सा हो जाया करता । मेरी छोटी-बड़ी उपलब्धियों को सराहने से लेकर असफल होने पर आत्‍मविश्‍वास के साथ फिर कोशिश करना आदि बातें आपने मेरे स्‍वभाव में कूट-कूट कर भर दी थी ।

मुझे याद हैं, जब मैं चौथी कक्षा में थी, फाइनल एग्ज़ाम के पहले मुझे बड़ी माता निकल आई थी, अपनी व्‍यस्‍तता के बावजूद उस समय मेरी स्‍पंजिंग से लेकर सुबह चार बजे उठकर नंगे पांव देवी मां को जल चढ़ाने जाना, ये सभी काम आप बिना नागे के किया करते ।

मुझे वो किस्‍सा भी याद हैं, जब मम्‍मा को एनिवर्सरी पर एक सरप्राइज़ पार्टी दी थी । उस दिन आप अपने नियमित समय से देर से उठे । मम्‍मा को लगा कि आप सुबह उठकर सबसे पहले उन्‍हें शादी की सालगिरह की मुबारकबाद देंगे, पापा उठे और ऑफिस की मीटिंग की बात कहकर आपने मम्‍मा को जल्‍दी से टिफिन तैयार करने को कहा, मां ने आपके हाथों में टिफिन देते हुए कहा ‘’’और कुछ तो नहीं चाहिएं, कुछ भूले तो नहीं,’’ पापा बोले- ‘’नहीं, मैं कुछ नहीं भूला रिया, और हां, हो सकता हैं आज ऑफिस से आने में देर हो जाएं, तुम अपने टाइम पर खाना खा लेना और रिनी को भी खिला देना ।‘’

पापा के जाने के बाद मां की ऑखों में आंसू आ गएं । वो रोने लगी तो मैने उन्‍हें चुप कराया, मुझे समझ ही नहीं आया कि मम्‍मा क्‍यों रो रही हैं । मैने पूछा तो बोली- कुछ नहीं रिनी, सिर में दर्द हो रहा हैं ।

शाम को तकरीबन 7 बजे के आस-पास पापा ने मम्‍मा को फोन करके कहा – तुम दोनों तैयार हो जाओं, मैं आधे घंटे में आता हॅू, मेरी कलीग का बर्थडे हैं, उसने पार्टी में सबको बुलाया हैं, और हां वह गाजरी रंग की साड़ी पहनना, तुम पर बहुत फ़बती हैं और साथ में मेचिंग एक्‍सेसरीज़ भी । रिनी को आसमानी कलर की फ्रिल वाली फ्राक पहनाना ।

कोई भी फंक्‍शन हो, मम्‍मा और मैं क्‍या पहनेंगे, ये पापा ही डिसाइड करते क्‍योंकि उनकी ड्रेसिंग सेंस बड़ी जबरदस्‍त थी ।

मम्‍मा ने पहले मुझे तैयार किया और फिर खुद तैयार हुई । उतने में भी पापा आए, हम दोनों को देखकर बोले- वाह, क्‍या बात हैं, बड़ी खूबसूरत लग रही हैं मां-बेटी दोनों । मम्‍मा ने कोई जवाब नहीं दिया, चुपचाप बेडरूम में जाकर अलमारी से पापा के लिए चॉकलेट कलर का शर्ट निकालकर बेड पर रख दी । पापा अंदर गए, जैसे ही उन्‍होंने शर्ट देखा मां को अंक में भरते हुए बोले –तुम्‍हारा भी जवाब नहीं, तुम मेरे दिल की हर बात बिना कहे ही जान लेती हो, आज मैं यहीं शर्ट पहनने वाला था ।

मां बोली – मैं तो आपके दिल की सारी बात जान लेती हॅू, पर आप कहॉ मेरे मन की बात समझ पाते हैं ।

अरे स्‍वीटहार्ट किस बात पर नाराज़ है ये चांद का टुकड़ा मुझसे, वैसे एक बात कहॅू तुम गुस्‍से में और भी खूबसूरत लगती हो । अच्‍छा चलों देर हो रही हैं, हमें जल्‍दी पार्टी में पहॅुचना हैं, तुमको तो मैं चुटकियों में मना लूँगा ।

हम तीनों कार में बैठें तो पापा ने पूछा कि उनकी कलीग स्‍वरा का जन्‍मदिन हैं, उसके लिए क्‍या गिफ्ट खरीदें,

मां शायद गुस्‍से में थी, रूखी आवाज़ में बोली – उसे डायमंड रिंग दिला दीजिए, आपकी कलीग हैं वो, खुश हो जाएगी ।

ओके ! चलो तुम कहती हो तो उसके लिए डायमंड रिंग ही दिला देते है, पर तुम पसंद करना ।

पापा ने सच में शो-रूम के सामने कार पार्क कर दी तो मां बोली- अरे मैं तो यूं ही कह रही थी, आप उसके लिए कोई दूसरा गिफ्ट ले लीजिए, डायमंड रिंग महँगी पड़ेगी ।

नहीं, एक बार जो हमारी मोहतरमा ने कह दिया सो कह दिया । चलो जल्‍दी से डायमंड रिंग पसंद करों ।

मम्‍मा शायद बेमन से कार से उतरी और डायमंड रिंग पसंद की । फिर हम तीनों एक बड़े से होटल पहॅुचे । पापा ने एक हाथ से मेरा और दूसरे से मम्‍मा का हाथ पकड़ा और होटल के फेमिली सेक्‍शन की ओर बढ़े । जैसे ही हम गेट खोलकर अंदर पहॅुचे, अंदर अंधेरा था, अंदर कदम रखते ही हम पर गुलाब की पंखुडि़यों की बारिश सी होने लगी, फिर लाइट की जगमग से रूम चमक उठा । टेबल पर बड़ा सा केक रखा था जिस पर हैप्‍पी मैरिज़ एनिवर्सरी लिखा था ।

पापा बोले- माय डियर, शादी की सालगिरह मुबारक हो, क्‍यों पसंद आया सरप्राइज़, मम्‍मा की आंखों में पानी आ गया। पापा के कंधे पर सिर रखते हुए बोली – आपको याद भी शादी की सालगिरह, और मैं बेवजह...

बस इतना बोली ही थी कि पापा बोले- तुमको क्‍या लगा, मैं भूल गया हू, अरे ऐसे कैसे भूल सकता हॅू, आज के दिन इतना खूबसूरत तोहफा मुझे मिला था

फिर पापा ने मम्‍मी की पसंद की डायमंड रिंग निकालकर उन्‍हें पहनाई, तो मैने कहा, चलिए ना मम्‍मा-पापा अब हम केक काटेंगे।

सच ! पापा हर ओकेशन को अपनी प्‍लानिंग से इतना खूबसूरत और यादगार बना देते थे, कि सबको मज़ा आ जाता था ।

पर कहते हैं न कि कई बार जब हम बहुत खुश होते हैं, खुद को खुशनसीब समझते हैं, मानते हैं कि दुनिया की हर वो खुशी हमारे दामन में हैं जिसकी हर व्‍यक्ति चाहत रखता हैं तो ऐसा समय भी आता हैं जब हमारी खुशियों को किसी की नज़र सी लग जाती हैं।

जैसे हम बाग के सबसे खूबसूरत फूल को देख उसे तोड़ लिया करते हैं, ठीक उसी तरह ईश्‍वर ने एक खूबसूरत – आकर्षक व्‍यक्तित्‍व के धनी मेरे पिता को चुनकर अपने पास बुला लिया । हम दोनों मां-बेटी जार-जार रोते रहें, पर ईश्‍वर के पास गया व्‍यक्ति कहां लौट कर आता हैं । मुझे धुंधला सा याद आता हैं कि मेरे पिता के शांत होने पर अस्‍पताल वाले उन्‍‍हें लेकर चले गये थे।

उनके अंतिम संस्‍कार की विधि संपन्‍न नहीं हुई, ज्‍यादा कुछ तो नहीं पता चला पर छोटी होने के कारण बस लोगों से मुंह से कहते सुना था कि पापा ने अंगदान कर दिए थे । रिश्‍तेदारों के लाख मना करने के बावजूद मम्‍मा ने पापा की अंगदान करने की इच्‍छा को पूरा किया । हालांकि उस समय मुझे इसका मतलब पता नहीं था ।

हर दिन, हर पल, हर समय पापा की यादें हमारे जेह़न में ताज़ा रहती, मैं तो मात्र छठी कक्षा में ही थी । मुझे गाने का बहुत शौक था । उस समय जब भी कोई मिलने आता, कुछ गाने को कहता तो मैं यहीं गाना गाया करती -: ‘’सात समुंदर पर से, गुडि़यों के बाज़ार से, एक अच्‍छी सी गुडि़या लाना, पर चाहे तो ना लाना, पर पापा जल्‍दी आ जाना ।‘’

दिन बीतते गएं, मम्‍मा को मां-पापा दोनों का प्‍यार मुझ पर बरसाने के लिए खुद को बहुत मजबूत करना पड़ा । स्‍कूल के फंक्‍शन्‍स में, पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में, जन्‍मदिन पर और मेरी हर उपलब्धि पर हमें पापा की कमी कदम-कदम पर महसूस होती, पर पापा के प्‍यार और नसीहतों से मैने धीरे-धीरे खुद की भावनाओं पर कंट्रोल करना सीख लिया ।

मैं रोने के बजाए अपनी भावनाओं को डायरी में लिखा करती, लिखा करती कि आप होते तो ऐसा कहते, ऐसा करते । पहली बार मेरे बनाएं हुए खाने की तारीफ में पूरे मोहल्‍ले भर में मेरा गुणगान किया करते, कॉलेज के पहले दिन मुझे ढ़ेर सारी नसीहतों के साथ भेजते, मुझे स्‍कूटी चलाना सिखाते, मेरी शादी में सारी खरीददारी उनकी ही पसंद से होती, फिर जब आप नाना बनते तो अन्‍नप्राशन में चांदी की कटोरी-चम्‍मच में खाना लेकर अपने हाथों से खिलाते । पर तकदीर तो हमसे कबसे ही रूठ मुंह फेर कर बैठ गई थी ।

एक बेटी के लिए उसके विवाह के अवसर पर पिता का ना होना एक बदकिस्‍मती के समान ही था, पर प्रकृति का नियम ही तो हैं कि किसी से जाने से दुनिया वहीं नहीं थम जाया करती, सो मेरी भी शादी की बात चल पड़ी थी । एक से एक रिश्‍ते आ रहे थे, पर बिन पापा के घर से बिदाई और मेरे जाने के बाद मम्‍मा का घर में एकदम अकेले हो जाने की कल्‍पना से भी मैं सिहर सी जाया करती ।

समय कहां रूकता हैं, मां की लाखों समझाइश के बाद मैं शादी के लिए तैयार हुई । पर शादी पक्‍की होने के बाद हर दिन, हर पल पापा की याद में मेरा मन अंदर से भींग जाया करता था ।

अभी शादी पक्‍की हुए 3-4 दिन ही हुए थे कि घर पर किसी का फोन आया कि वे और उनकी पत्‍नी हमारे घर अगले दिन पहॅुच रहे हैं । शादी की सारी तैयारियां उनके आने के बाद ही तय होगी ।

फोन का रिसीवर रखने के बाद मम्‍मा हैरान-परेशान हो गई, कि आखिर वे कौन हैं, जिन्‍हें वो जानती भी नहीं, और बिन बुलाए मेहमान के समान उनकी बेटी की शादी की तैयारियों में शरीक होना चाहते हैं ।

खैर अगले दिन दोपहर वे दोनों पति-पत्‍नी हमारे घर आ गएं । हालांकि अपरिचित होने के बावजूद उन्‍हें चाय-नाश्‍ता सर्व करके हम प्रश्‍नवाचक निगाहों से उनके बारे में जानने को उत्‍सुक थे, हमारी जिज्ञासा जानकर उन्‍होंने हमें बताया कि हमारे पापा ने अंगदान किया था, और पापा का हार्ट उनको डोनेट किया गया था । किंतु इतने सालों तक वे हमसे इसलिए नहीं मिल पाएं क्‍योंकि कि डोनेशन के नियमों के तहत् अंगदान करने वाले को इस बात का पता नहीं होना चाहिए कि किसे अंगदान किए गए हैं । कुछ वर्ष भारत में रहने के बाद जब बेटे की नौकरी यू एस में लगी तो उनका बीच-बीच में यू एस जाना आना लगा रहा । इस बीच वे दंपत्ति हमारी सारी खोज-खबर परिचितों के माध्‍यम से ले लिया करते थे । पिछले वर्ष ही भारत में लौटे तो उन्‍हें पता चला कि मेरी शादी की बात चल रही हैं तो शादी पक्‍की होते ही वे मेरे पिता के समस्‍त दायित्‍वों का निर्वाह करने बिन बुलाए ही चले आए ।

उन्‍होंने मुझे अपने पास बुलाकर बिठाया और बोले- बिटिया, मुझे अपना पापा ही समझना, देखों उनका दिल जो मेरे पास हैं, मेरे दिल ने ही यह कहा कि बिटिया की शादी में कोई कोर-कसर ना रहें, सारी खरीददारी, और रस्‍में मैं ही पूरी करूंगा, बस एक बार मुझे पापा कहकर बुलाओं, मुझे पापा कहने वाली प्‍यारी सी बिटिया मेरे पास नहीं हैं । तुम्‍हारे पापा ने मुझे नई जिंदगी दी हैं, और उसी रिवाज को बदस्‍तूर जारी रखने के लिए हम दोनो पति-पत्‍नी ने अपने अंगदान करने के लिए रजिस्‍ट्रेशन कर दिया है । मेरा पूरा जीवन तुम्‍हारे पापा के नाम हैं ।

फिर उन्‍होंने अंगदान की पूरानी पूरी कहानी मुझे और मम्‍मा को बताई और कहां कि वे हमारे परिवार और पापा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं, जिन्‍होंने उन्‍हें नया जीवन दिया । सगाई के पहले मम्‍मा ने ससुराल वालों से उनका परिचय मेरे बड़़े पापा कहकर कराया ।

फिर आगे मेरी सगाई और शादी की सारी रस्‍मों में उन्‍होंने पापा की सारी भूमिका निभाई और विदाई के समय कहा कि कभी ये मत सोचना कि तुम्‍हारे ससुराल जाने के बाद तुम्‍हारी मां अकेली हैं, हम मम्‍मा का पूरा खयाल रखेंगे ।

फिर कुछ ही दिनों बाद मेरे पापा ने मुझे बताया कि मम्‍मा का खयाल रखने के लिए उन्‍होनें बिल्‍कुल सामने वाला फ्लेट खरीद लिया हैं, और अब वे तीनों साथ ही खाना खाते, एकसाथ समय व्‍यतीत करते । इसलिए अब मम्‍मा की चिंता का प्रश्‍न ही नहीं उठता था ।

सच अंगदान ऐसा पुण्‍यकर्म है, जो जीवन के बाद भी दूसरे जरूरतमंद लोगों के होठों पर खुशियां वापस ला सकता हैं, मृत्‍यु की दहलीज़ पर खड़े व्‍यक्ति को नवजीवन देकर स्‍वयं को हम अमर बना सकते हैं, किसी परिवार को अनाथ होने से बचा सकते हैं । मुझे गर्व हैं कि मेरे पापा ने इतना सटीक निर्णय लिया ।

दिन बीतते गए, हमारी शादी की पहली सालगिरह आने वाली थी, मेरे पति ने मुझसे पूछा कि तुमको शादी की सालगिरह पर क्‍या उपहार चाहिए, तो मैने उनसे गुज़ारिश की कि मुझे अंगदान करने के लिए रजिस्‍ट्रेशन करना हैं, तो मुझे इसके लिए फार्म चाहिए ।

सुनते ही मेरे पति हतप्रभ रह गए । बोले- अरे वाह, क्‍या बात हैं, मैने तो सोचा था कि और महिलाओं की तरह तुम कोई गहना या कपड़े मांगोगी, पर तुमने तो यह बड़ा अच्‍छा काम करने की योजना बनाई, तो चलो क्‍यों ना अपनी पहली सालगिरह पर हम दोनों आर्गेन डोनेशन फार्म का रजिस्‍ट्रेशन कराएं ।



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