वो भीगी भीगी शाम
वो भीगी भीगी शाम
मैं अपने कमरे में यहाँ-वहाँ चहल-कदमी कर रहा था। खुली खिड़की से आती ठंडी-ठंडी हवा से पास ही टेबल पर रखी मेरी डायरी के पन्ने फड़फड़ाने लगे। कुर्सी खींचकर मैं टेबल के पास ही बैठ गया कि अचानक बिजली की कड़कड़ाहट के साथ बूंदाबांदी शुरू हो गई। मिट्टी की भींनी सी खुशबू ने मेरी चाय पीने की तलब को बढ़ा दिया।
बहू ने ट्रे में पहले ही थर्मस में गर्मागरम अदरक वाली चाय, नमकीन और बिस्किट रख दिये थे और बेटी ने कमरे से बाहर ना आने की हिदायत भी दे दी थी। शायद हर साल की तरह हमारी शादी की सालगिरह मनाने के लिए कुछ सरप्राइज प्लान किया होगा बच्चों ने मिलकर।
मैंने थर्मस से चाय कप में पलटी और खिड़की से पहली खुशनुमा बारिश के नज़ारे का आनंद ले रहा था।
हल्की बूंदाबांदी अब धीरे-धीरे तेज बारिश में बदलती जा रही थी, खिड़की से आती फुहारें डायरी को ना भिगों दे इसलिए मैंने जल्दी से खिड़की बंद कर दी। पर इतनी कवायद में टेबल पर रखी तुम्हारी फोटो पर कुछ बूंदे पड़ ही गई। चाय की चुस्कियों के साथ ही फोटो को हाथ में लेकर मैं अपलक तुमको निहारता रहा। सच पानी में भींगे गुलाब की तरह तुम आज भी उतनी ही आकर्षक लग रही हो, जितनी दशकों पहले उस बारिश की भींगी शाम में लग रही थी।
दशकों पहले की घटना चलचित्र की भांति आँखों के सामने गतिमान हो उठी थी। मेरा सिलेक्शन 'मार्केटिंग ऑफिशियल' के पद पर हुआ था और तीन माह का ट्रेनिंग सेशन इंदौर में आयोजित होने वाला था। मेरे बचपन के दोस्त ने फोन करके कहा था- "वेदांत, मेरी कजिन विधि भी तुम्हारे बैच में ट्रेनिंग के लिए इंदौर आने वाली है। थोड़ी चुलबुली है, जरा उसका ध्यान रखना यार।"
ट्रेनिंग के पहले सेशन में इंट्रॉडक्शन सेशन था। वहीं मेरा और तुम्हारा यानि विधि का परिचय हुआ। पहले दिन चार सत्रों में विविध विषयों पर हुए लेक्चर्स कें बढ़-चढ़ कर भागीदारी करने से लेकर टी ब्रेक में चाय की खराब क्वालिटी को लेकर पुरजोर विरोध करने में भी तुम पीछे नहीं रही।
मैंने ही समझा-बुझाकर तुम्हें शांत कराया। शाम को सारे ट्रेनीज ने मिलकर 'ट्रेजर आईलैंड' घूमने का प्लान बनाया। मॉल में हम सब अपने-अपने मनपसंद फ्लेवर आइसक्रीम ले रहे थे कि तभी मुझे ध्यान आया कि विधि तो हमारे साथ दिख नहीं रही थी। कोई बोला- "अरे नई जगह है, साथ में रहना चाहिए अब यदि कहीं भटक गई होगी तो कहाँ ढूंढेंगे। वापस होटल भी टाइम पर पहुंचना है। लौटने में देर हो जाएगी तो होटल में डांट खानी पड़ेगी।"
हम सभी साथी मॉल में घूमना छोड़, विधि को ढूंढने में जुट गए।
विधि को ढूंढते-ढूंढते मैं मॉल के निचले फ्लोर की ओर पहुंचा तो देखा विधि मजे से चॉकलेट फाउंटेन देखने में व्यस्त थी। उसको तो पता ही नहीं कि पूरा का पूरा ग्रुप उसको लेकर कितना परेशान हो रहा है।
मैं विधि के पास पहुंचा और उसे जोर से झिंझोडते हुए बोला- "विधि, तुम क्या छोटी बच्ची हो जो हम लोग तुम्हारे पीछे-पीछे घूमते रहेंगे। तुमको अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं आती कि ग्रुप के साथ आई हो तो उसके साथ रहो। जहाँ मर्जी हो, वहाँ भागती रहती हो, हद हो गई तुम्हारे पीछे हम लोगों का मॉल घूमने का मजा ही किरकिरा हो गया और तुम हो कि यहाँ फाउंटेन के मजे ले रही हो।"
"ओह वेदांत! आइ एम वेरी सॉरी, पर देखों तो ये चॉकलेट फाउंटेन कितना प्यारा लग रहा है।देखों ना प्लीज!" कहते हुए मेरी खींझ और गुस्से से अनजान विधि ने मेरा हाथ पकड़ लिया और आगे की ओर खींच कर ले जाने लगी।
मैंने हाथ झटकारते हुए कहा- "बहुत हो गया तुम्हारा बचपना, बाकी ग्रुप वाले तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं। चलो वापस होटल भी जाना है समय पर हमें। इस बात का पता है तुमको या नहीं।"
तब तक सभी साथी वहीं आ गये थे और फिर हम सभी ग्रुप वाले चिड़चिड़ाते हुए वापस होटलकी ओर चल पड़े। रास्ते में सबने विधि को बहुत झिड़कियां दी। पर मुझे नहीं लग रहा था कि विधि पर किसी की डांट का कोई खास असर पड़ रहा होगा।
अगले दिन क्लास खत्म होने के बाद सभी की सम्मति से हमने राजवाड़ा घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया पर जाने से पहले सबने विधि को साथ में रहने की सख्त हिदायतें दे दी। फिर हम सब राजवाड़ा की ओर पैदल ही चल पड़े क्योंकि हमारे होटल से वह बहुत नजदीक था। विधि बीच-बीच में यहाँ-वहाँ भागती तो हम में से कोई न कोई उसको वापस खींच कर साथ ले लेता और उसे बार-बार डांट खानी पड़ती पर वो भी कहाँ अपनी हरकतों से बाज़ आ रही थी। सड़कों के आस-पास लगे लज़ीज़ नाश्ते के स्टॉल से आती भींनी-भींनी खुशबू से हम सबसे पेट में चूहे कूदने लगे। सब लोग अपनी-अपनी मनपसंद चीजें खरीदने अलग-अलग स्टॉल पर ऑर्डर देने लगे । मैंने तो साबूदाने की टिकिया की बहुत तारीफ सुन रखी थी सो मैं उसी स्टॉल पर पहुंचा और विधि को भी साथ ही रहने को कहा।
पर उसका मन तो गोलगप्पे खाने का था। वो बोली कि सामने वाले स्टॉल पर गोलगप्पे खाएगी, तब तक साबूदाने की टिक्की लेकर वहीं आ जाना। मैंने हाँ कहा और गर्मागरम साबूदाने की टिक्कियों को तलते हुए देख रहा था। टिक्की से भरा दोना थामकर मैं दुकानदार को पैसे देने ही जा रहा था कि पीछे से भजन मंडली भजन गाते हुए आते दिखाई दी।
मैं विधि को आवाज़ लगाता, उसके पहले ही भीड़भाड़ और शोर-शराबे के साथ धक्कामुक्की में मैं पीछे की ओर चला गया। इतनी बड़ी भजन मंडली की रैली निकलते-निकलते करीब 15-20 मिनट लग गए। भीड़ छंटने पर जब मैंने देखा कि गोलगप्पे के स्टॉल पर विधि नहीं दिख रही है तो मेरे हाथों से साबूदाने की टिक्की का दोना कब छिटक कर गिर गया, पता ही नहीं चला और मैं बौखलाया सा आस-पास नज़र दौड़ाकर विधि को ढूंढने की कोशिश करने लगा।
आस-पास खड़े अपने ग्रुप के साथियों से फिर से विधि के खोने की बात कही। सब परेशान हो गये। फिर हम सबने मिलकर एक निर्धारित जगह पर मिलने का निश्चय किया और आस-पास विधि को ढूंढने अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़े। मैंने अंदाजा लगाया कि रैली जिस ओर गई होगी, शायद विधि भी रैली की धक्का–मुक्की में उनके साथ ही आगे निकल गई होगी। मैं हैरान-परेशान हो उसी दिशा में आगे बढ़ता गया।
करीब एक कि.मी. आगे पहुंचा था कि अचानक ही बिजली की गड़गड़ाहट के साथ बूंदाबांदी शुरू हो गई, मैं तेज कदमों से आगे बढ़ता गया। अंधेरा गहराता जा रहा था, मेरी नज़र पास ही एक बड़े से पेड़ के नीचे खड़ी लड़की पर पड़ी, बिजली की चकाचौंध में साफ नजर आया कि बूंदाबांदी में खुद को भींगने से बचाने की कवायद करने के लिए उसने दुपट्टा सिर पर ओढ़ रखा था। थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा ये तो विधि ही है।
रोती हुई विधि ने जब मुझे पास आते देखा तो दौड़ते हुए मेरे करीब आकर मुझे कसकर अपने अंक में भरते हुए बोली- "मैं बहुत डर गई थी वेदांत, अच्छा हुआ तुम आ गये। मैं तो रास्ता ही भूल गई थी। विधि की बात सुनकर गुस्सा तो बहुत आया पर समय की नजाकत को देखते हुए चुप रहा। खुद को विधि के हाथों से छुड़ाते हुए मैंने अपनी जेब से रूमाल निकाला और उसके एक छोर से विधि के हाथ् को गांठ बांधकर दूसरे छोर से खुद के हाथ को गांठ बांधी और विधि को चुपचाप तेज कदमों से चलने का इशारा किया। बारिश की पहली बौछार में हम दोनों भीगते-भीगते वापस राजवाड़़े की ओर चल पड़े। मैं लगभग रूमाल से बंधी विधि को खींचते हुए ही ले रहा था। कुछ ही मिनटों में हम राजवाड़े में निर्धारित स्थान पर पहुंच गये।
ग्रुप के बाकी सब साथी भी कुछ ही समय में वहाँ पहुंच गये। सब विधि को देखते ही उस पर बरस पड़े। मैंने सबको शांत किया और वापस होटल की ओर चलने को कहा । विधि हाथ से रूमाल की गांठ छुडाने लगी तो एक साथी ने कहा- "रूमाल बंधे रहने दो विधि, नहीं तो फिर कहीं यहाँ-वहाँ भागकर हमारी आफत कर दोगी।"
रिमझम बारिश में हम दोनों रूमाल से बंधे-बंधे सबके साथ जल्दी-जल्दी होटल की राह पर चलने लगे। मैंने देखा कि विधि की आँखों में आंसुओं का सैलाब सा थमा था और वह बुझे मन के साथ कनखियों से मुझे ही निहार रही थी जैसे क्षमा याचना कर रही हो।
होटल पहुंचने तक हम सभी लगभग भीग ही चुके थे। मेन गेट पर पहुंचने पर मैं जैसे ही रूमाल से विधि के हाथ पर बंधी गांठ खोलने लगा तो विधि बोली- "वेदांत, मत खोलो ना ये गांठ। क्या हम यूँ ही जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बंधे नहीं रह सकते क्या? मैं वादा करती हूँ अपनी ऐसी बचकानी हरकतों से तुमको कभी परेशान नहीं करूंगी। बहुत जिम्मेदारी से अपनी गृहस्थी संभालूंगी।" विधि की ओर देखते हुए बिना उसकी बातों का जवाब दिये मैंने रूमाल की गॉठ खोली और अपने कमरे की ओर मुड गया।
ट्रेनिंग सेशन खत्म होने तक हम सभी आपस में बहुत घुल-मिल गए थे। आपस में एड्रेस और घर के फोन नंबर का आदान प्रदान हो गया था। फिर मिलने का वादा करके हम सभी अपने गंतव्य की ओर रवाना होने वाले थे।
मैंने नोटिस किया कि विधि की नज़रें पूरे समय मुझे ही ढूंढा करती, शायद मेरे ह्रदय में भी उसके लिए प्यार का अंकुर पनपने लगा था। जाने के पहले हम दोनों अकेले में मिले तो विधि ने रोते-रोते मेरा हाथ थामा और बोली- "वेदांत मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूँ , क्या तुम्हारे मन में मेरे लिए जरा सी भी जगह नहीं हैं?"
मैंने उसका हाथ सहलाया और अपना ध्यान रखने की सख्त हिदायत देकर अपने हेडक्वार्टर की ओर चल पड़ा। हम सभी ने अपने-अपने पदस्थापित कार्यालय में कार्यभार ग्रहण किया। शुरूआती समय तो अपना-अपना काम समझने और नए रूटीन में सामंजस्य बनाने में निकल गया। फिर अचानक एक दिन विधि का फोन आया। उसने बताया कि उसके कजिन यानि मेरे दोस्त की शादी पक्की हो गई है और उसकी शादी में आने का वादा लेने के साथ हम दोनों ने अपने-अपने ऑफिस के हाल-चाल शेयर किए। मुझे भी विधि से बात करके बहुत अच्छा लगा। ऐसा महसूस हुआ कि विधि के स्वभाव में बहुत मेच्यूरिटी आ गई है। उसका इस तरह बेतकल्लूफ बात करने का अंदाज मुझे बेहद भाता था। मैंने भी दिल खोलकर उससे बात की।
विधि से मिलने की कल्पना ही मुझे नख-शिखांत रोमांचित कर गई। मेरे दोस्त और विधि के कजन की शादी में हम दोनों का एक-दूजे से प्यार हमारे परिवार वालों की नज़रों से छिप ना सका और बिना विरोध सर्वसम्मति से हम विवाह के अटूट बंधन में बंध गये।
सच विधि ने अपने वादे के अनुसार बहुत जिम्मेदारी से न केवल घर-आँगन को गुलज़ार किया बल्कि मेरे प्रति बेइंतहा प्यार को सदैव फूलों सा महकता बनाए रख दोनों प्यारे बच्चों में संस्कारों के बीज बोकर मेरे जीवन को प्रेम के इंद्रधनुषी रंगों से लबरेज ही कर दिया था।
विधि तुम मुझसे हमेशा कहा करती थी ना कि - "मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती वेदांत, मैं तो तुम्हारे कंधे पर ही जाउंगी।" सच विधि मैं भी कहाँ तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना कर सकता था पर मैं नहीं चाहता था कि मेरे जाने के बाद तुम्हारी आँखे कभी आंसुओं से नम हो। शायद ईश्वर ने हम दोनों की प्रार्थना सुन ली थी और मैं तो तुम्हारे साथ बिताई स्वर्णिम यादों के सहारे जिंदगी के ये चंद दिन काट ही लूंगा। क्योंकि मैंने तुम्हे हर क्षण अपने पास ही पाया है, हवा के झोंकों में, फूलों की खुशबू में महकी वादियों में बस तुम ही तुम हो।
पापा-पापा, चलिये ना बाहर ड्राइंग रूम में, बच्चों की आवाज ने मेरी तंद्रा को तोड़ दिया। बेटी और बहू हाथ पकड़कर मुझे ड्राइंग रूम ले जाने लगी।
बाहर आया तो देखा पूरा कमरा विधि के मनपसंद गुलाबी रंग की सजधज के साथ दुल्हन की तरह सजा था और दामाद हमेशा की तरह विधि का मनपसंद ब्लेकफॉरेस्ट केक लेकर आए थे। मेरे हृदय की बात शायद मेरी बेटी ने समझ ली थी। वह फटाक से कमरे में गर्इ और अपनी माँ की फोटो लेकर आई और केक के पास रखते हुए बोली- "पापा, लीजिए, माँ भी आ गई, अब तो केक काटिये ना।"
फोटो को देखकर यूँ लगा जैसे तुम कहीं दूर नहीं, मेरे पास, मेरे दिल के पास ही हो। मैंने केक काटा और बच्चों को खिलाया तो लगा जैसे मुस्कुरा रही हो। मेरी जीवन की बगिया में खिलें भीगे गुलाब की तरह, बिल्कुल बरसों पहले वाली भीगी शाम की तरह...!