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sargam Bhatt

Drama Action Fantasy

4.2  

sargam Bhatt

Drama Action Fantasy

मानसिकता

मानसिकता

7 mins
390


पति-पत्नी दोनों के कामकाजी होने के कारण अकसर औफिस से घर लौटते समय पत्नी के साथ होने की वजह से सागर चाहते हुए भी कभी उसे लिफ्ट देने की नहीं सोच पाया था। लेकिन आज इत्तफाक से पत्नी की औफिस से छुट्टी होने से वह अकेला था और वह इस अवसर को खोना नहीं चाहता था।

‘‘कहां तक जाएंगी आप?’’ उस की ओर देख मुसकराते हुए उस ने कार खाली रास्ते पर आगे बढ़ा दी। शामका सूरज ढलती रात का आभास देने लगा था।

‘‘अब जहां तक आप साथ दे देंगे,’’ अब तक अपनी हिचकिचाहट पर वह भी काबू पा चुकी थी और सहज ही मुसकरा रही थी।

‘‘तो क्या आप कुछ घंटों के लिए मेरा साथ पसंद करेंगी?’’ कहते हुए सागर को उस की मुसकराहट कुछ रहस्यमय लगी लेकिन उस के बारे में लोगों की व्यक्त राय उसे एकदम सही लगने लगी थी।

‘‘ओह, तो आप मेरे साथ समय गुजारना चाहते हैं?’’ अनायास ही वह हलकी हंसी हंसने लगी। ‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो?’’‘‘मुझे क्या एतराज हो सकता है, भला,’’ उस की रहस्यमयी मुसकान पहले से अधिक गहरी हो गई थी।

कार टोल पार कर अब खुले हाईवे पर आ चुकी थी। वह चाहता तो कार की स्पीड बढ़ा सकता था, लेकिन उस ने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया और कार को धीमा ही चलाता रहा। बीचबीच में उस के हसीन चेहरे को देखना सागर को बहुत अच्छा लग रहा था। वह उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहता था। आपस में नजर मिलते ही उस का मुसकरा देना सागर के लिए जैसे गरमी के मौसम में भी ठंडी हवा का झोंका बन कर आ रहा था।

ऐसा नहीं था कि उस का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था या उस की पत्नी सुंदरता व आधुनिकता के मामले में किसी से कम थी लेकिन न जाने क्यों जब से उस ने परी की कहानियां सुनी थीं और उसे एक नजर देखा था, तब से ही वह एक बार उस का साथ पा लेने के लिए बेचैन सा हो उठा था। और आज उस के पहलू में बैठी परी मानो उस की इच्छाओं को पूरा करने के रास्ते पर उस के साथ जा रही थी।

इधर, दूसरी ओर ‘परी’ यानी कामना जो अपनी आधुनिक जीवनशैली व खुलेअंदाज के कारण मौडल, हीरोइन, लैला और परी जैसे कितने नामों से कथित पुरुष समाज में जानी जाने लगी थी, आज सामने आई इस परिस्थिति में सहज मुसकराते हुए खुद को नौर्मल रखने का हर संभव प्रयत्न कर रही थी, लेकिन उस का मन उसे पीछे कहीं पुरानी यादों में जबरन खींच कर ले जा रहा था। उस रोज पति के साथ हुई बातें उस के जेहन में फिर से ताजा होने लगी थीं।

‘हां, मुझे एतराज है तुम्हारे इस आधुनिक पहनावे और गैरों से खुलेव्यवहार पर,’ अजय की आवाज अपेक्षाकृत ऊंची थी।

‘लेकिन, कभी मेरी यही खूबियां तुम्हें अच्छी भी लगती थीं अजय। अब ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें ये सब बुरा लगने लगा,’ वह भी पलट कर जवाब देने से नहीं चूकी थी, ‘कहीं ऐसा तो नहीं, जिन नजरों से तुम मेरी सहेलियों को देखते हो, वही मानसिकता तुम्हें हर पुरुष की लगने लगी है ?’

‘कामना,’ अजय एकाएक गुस्से से चिल्ला पड़ा था, ‘तुम्हें कोई हक नहीं मुझ पर इस तरह आरोप लगाने का। ’‘मैं आरोप नहीं लगा रही, बल्कि तुम्हें सच का आईना दिखा रही हूं, जो मेरी सहेली भावना ने मुझे तुम्हारी आवाज की रिकौर्डिंग के साथ व्हाट्सऐप किया है। चाहो तो तुम स्वयं इसे सुन सकते हो,’ कहते हुए उस ने अजय के सामने अपना मोबाइल फेंक दिया था।

‘ओह शिट, योर ईडियट फ्रैंड,’ अजय बदतमीजी से बोला, दो बातें तारीफ करते हुए कह भी दीं तो क्या गुनाह कर दिया, आखिर ये औरतें मौडर्न बनने का इतना ढोंग क्यों करती हैं जब मानसिकता उन्नीसवीं सदी की ही रखती हैं। ’‘क्योंकि तुम मर्दों की मानसिकता में अपने घर की औरत और बाहर की

औरत के लिए हमेशा विरोधाभास रहता है। ’‘कामना, शटअप, ऐंड कीप क्वाइट नाऊ। ’‘हां, हो जाऊंगी मैं चुप,’ कामना उस को जवाब दिए बिना चुप नहीं होना चाहती थी, ‘लेकिन अच्छा होगा कि सुधर जाओ, वरना…’

‘‘हैलो, हैलो, कहां खो गईं आप? अरे, मैं कुछ कह रहा हूं, कहां खो गईं आप?’’ सागर के बारबार उस को पुकारने पर वह अनायास ही वर्तमान में लौट आई।

‘‘जी, नहीं, कहीं नहीं। बस, यों ही कुछ सोचने लगी थी, कुछ कह रहे आप?‘‘मैं कह रहा था कि यहीं पास में एक अच्छा रैस्टोरैंट है, अगर आप को एतराज न हो तो…’’ अपनी बात अधूरी ही छोड़ कर सागर मुसकराने लगा था। ’’

‘‘नहीं, मुझे भला क्या एतराज हो सकता है,’’ जवाब देते हुए वह भी मुसकराने लगी। सागर ने कार रैस्टोरैंट की ओर मोड़ दी, स्टेरिंग के साथसाथ उस का दिमाग भी आगे के बारे में गोलगोल सोचने लगा था। इधर कामना फिर अतीत की गहराइयों में जा पहुंची जहां अब समयसमय पर अजय की बातों से समाज में कुछ न कुछ सुनाई पड़ ही जाता था। ऐसा नहीं था कि अजय उस के प्रति कभी लापरवाह रहा हो या उन के आपसी प्रेम में कोई कमी दिखाई देती हो, लेकिन इस तरह की घटनाएं अकसर उसे विचलित कर देती हैं और फिर उस दिन घर की कामवाली सोनाबाई के अजय पर सीधा अटैम्पट टू रेप का आरोप लगाने के बाद तो सबकुछ खत्म हो गया था। पीछे शेष रह गई थी सिर्फ आरोपप्रत्यारोप और उस के दामन तक पहुंचने वाले छींटे। पति ही नहीं, पत्नी भी दोषी है क्योंकि यदि पत्नी समर्पित होती तो मतलब ही नहीं कि पति बाहर मुंह लगाने की सोचे…’

‘‘ट्रिन…न…न…’’ की तेज आवाज से वह एक बार फिर अतीत छोड़ वर्तमान में आ गई। कार रैस्टोरैंट के पास खड़ी थी और सागर उसे नीचे उतरने के लिए कहना चाह रहा था। एक क्षण के लिए वह जड़ हो गई,

लेकिन जल्दी ही उस ने खुद को संभाल लिया। ‘‘हां, हमें उतरना चाहिए। पर क्या मैं इस से पहले आप के मोबाइल से एक कौल कर सकती हूं। ’’

‘‘

‘हां, जरूर, क्यों नहीं। ’’ कहते हुए सागर ने आंखों में असमंजस का भाव लिए अपना आईफोन उसे थमा दिया। ‘‘टिं्रग…टिं्रग…टिं्रग…’’

‘‘मेरी प्रिय सखी, इस नंबर को देख कर तुम यह तो समझ ही गई होगी कि मैं इस समय किस के साथ हूं, मिलाए गए नंबर पर जवाब मिलते ही वह बात शुरू कर चुकी थी। ’’

‘‘ज्यादा हैरान मत होना, सखी। बस, कुछ देर बात करना चाहती हूं तुम से। ’’अनायास ही सागर को आभास होने लगा था कि आज वह एक बड़ी गलती कर बैठा है, परी उसे बखूबी जानती है और दूसरी ओर फोन पर अवश्य ही उस की कोई जानकार है जिस से वह इस समय बात कर रही है।

‘‘तुम्हें याद है न, सखी,’’ वह अपना वार्त्तालाप जारी रखे हुए थी और अनायास ही उस ने फोन को स्पीकर मोड पर कर दिया था, ‘‘तुम ने मुझ से कहा था कि यदि पत्नी समर्पित और सच्चरित्र हो तो कोई कारण नहीं कि पति के कदम भटक जाएं। और मैं तुम्हारी इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाई थी क्योंकि मैं खुद भी नहीं समझ पाई थी कि मेरा पति क्या वास्तव में भटका हुआ था या सिर्फ मेरी कामवाली का उस पर लगाया गया आरोप महज एक हादसा था। ’’

‘‘पहले मुझे यह बताओ कि सागर कहां है?’’ स्पीकर पर पत्नी की आवाज सुन एक क्षण के लिए वह सिहर गया। इस बदलते घटनाक्रम को देख कर वह कार को रास्ते के एक ओर रोक कर पूरा माजरा समझने का प्रयास करने लगा। फोन पर पत्नी की मनोस्थिति महसूस कर वह अब खुद को निष्क्रिय सा महसूस करने लगा था।

‘‘चिंता मत करो, भावना। तुम्हारा पति मेरे साथ है और हां, मैं ऐसा कुछ नहीं करने जा रही जैसा कि लोग मेरे बारे में सोचते हैं। ’’ उस के शब्द जैसे सागर का उपहास उड़ा रहे थे जो अपने कई कथित साथियों की तरह उस के बारे में एक गलत राय बना बैठा था। ‘‘और हां, न ही मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण पर कोई सवाल उठा रही हूं। बस, मैं तो…’’ अपनी बात कहते हुए उस ने एक जलती नजर पास बैठे सागर पर गड़ा दी थी, ‘‘मैं तो उस सवाल के बारे में सोच रही हूं जिस का उत्तर मुझे उस दिन भी नहीं मिला था और आज भी नहीं मिला है। यदि पत्नी हर तरह से समर्पित है और उस के बाद भी पति के कदम भटकते हैं तो यह महज उन की कामनाओं की दुर्बलता है या सदियों से नारी को भोग्या मान लेने की नरमानसिकता। ’’

कामना अपनी सखी भावना से बात खत्म कर, कार का दरवाजा खोल, जा चुकी थी और सागर पत्थर बना मोबाइल की ओर देख रहा था जिस पर अभी भी पत्नी की हैलोहैलो गूंज रही थी। दूर कहीं शाम का ढलता सूरज रात में बदल चुका था।


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