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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

अहंकार

अहंकार

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पण्डित मोलहु शास्त्री इलाके के भर के पुरोहित थे किसी जाति का व्यक्ति हो जजमान मोलहु पण्डित का ही था।

लोंगो को इससे कोई लेना देना था ही नही की मोलहु पण्डित को कर्मकांड का रंच मात्र ज्ञान है भी या नही मोलहु पण्डित जो बोले करे उनके लिए वही कर्मकांड के सूत्र सिंद्धान्त थे।

पण्डित जी की इलाके में बहुत इज़्ज़त थी हर आदमी उनसे अपने घरेलू बातों में मशविरा करता मोलहु भी अपनी जानकारी अनुभव के आधार पर समाधान सुझाव देते ।

पहले बराते तीन दिनों की होती थी लोगो के पास समय था संसाधन सीमित थे बरात के दूसरे दिन दोपहर के भोजन के बाद एक सभा आयोजित की जाती थी जिसमे वर वधु दोनों पक्षो के बिभन्न विषयों के जानकार एक दूसरे से संवाद करते एव एक दूसरे से अपने अनुभव ज्ञान साझा करते।

मोलहु पण्डित ऐसे अवसर पर शस्त्राद हेतु बुलाये जाते और शस्त्राद होते जिसमे इलाके के लोग मोलहु पण्डित को ही विजेता घोषित करवाते और मोलहु पण्डित को इलाके की इज़्ज़त बढ़ाने के पुरस्कार मिलते। 

पता नही कैसे पण्डित मोलहु को भ्रम हो गया कि वह बहुत बड़े विद्वान है और वह ऐसा आचरण करते जैसे उनसे बड़ा विद्वान कोई है ही नही ठीक उसी प्रकार जैसे कहावत मशहूर है #अधजल गगरी झलकत जाय#

पण्डित जी की इलाके वाले इज़्ज़त बहुत करते लेकिन पण्डित जी का बेवजह अंहकार की वह बहुत बड़े विद्वान है इलाके के लांगो को बहुत अखरता जबकि इलाके के लोगो ने ही उन्हें बड़े विद्वान का दर्जा दिला रखा था।

गांव वालों ने सोचा पंडित जी का भ्रम टूटना नितांत आवश्यक है लेकिन सही समय का इंतज़ार करते ।

गांव से एक बारात दूसरे गांव गयी थी गांव के लगभग सभी घरों के लोग बरातीं के रूप में सम्मिलित थे रात को पंडित जी जब विवाह संपन्न कराने के लिए विवाह मंडप में पहुंचे तब दूल्हे और वर वधु दोनों पक्ष की सहमति से गांव के कुछ नौजवान विवाह मंडप मे उपस्थित रहने की अनुमति ली और मंडप में उपपस्थि हुए। 

नौजवानों ने ठान लिया था कि आज पण्डित जी के #अधजल गगरी छलकत जाय # ज्ञान का पण्डित जी को सिर्फ एहसास कराना है जब गांव और पण्डित जी के इज़्ज़त की बात आएगी तब मामले को सभाल लिया जाएगा ।

इसके लिए दूल्हे पक्ष के नौजवानों ने वधु पक्ष के कुछ महिलाओं से बात किया कि जब पण्डित जी कोई श्लोक विवाह से सम्बंधित बोले आप लोग सिर्फ यही बोले पण्डित जी अशुद्ध किम वक्तव्यम। 

पण्डित जी ने विवाह शुरू कराया उन्हें हमेशा की तरह यही विश्वास था कि गांव के नौजवान उनके पक्ष में खड़े रहगे उन्होंने ज्यो ही विवाह के मंत्रों को बोलना शुरू किया वधु पक्ष की महिलाएं एक स्वर में बोल उठी अशुद्धम किम वक्तयवम पण्डित जी ने अपना सर घुमाया की गांव के नौ जवान उनके समर्थन में कुछ बोलेंगे लेकिन गांव वाले कुछ भी नही बोले उल्टा कहने लगे पण्डित जी यह तक वधु पक्ष का घर है यदि उनको लगता है कि आप मंत्रोच्चारण शुद्ध नही कर पा रहे है तो वधु पक्ष के पण्डित को ही विवाह कार्य सम्पन्न कराने दीजिये। 

मोलहु पण्डित को एहसास हो गया कि आज उनके योग्यता को ही चुनौती दी जा रही हैं दुने उत्साह से मंत्रोच्चारण उन्होंने शुरू किया पुनः वधु पक्ष की औरतों ने टोका टाकी करते हुए कहा पण्डित जी अशुद्धम किम वक्तव्यम ।

पण्डित जी मंत्रोच्चारण करते रहे वधु पक्ष की महिलाएं तेज स्वर में बोल उठी वर पक्ष के पण्डित को विवाह कराने की कोई जानकारी नही है ये सारे मंत्र अशुद्ध बोल रहे है ।

वधु पक्ष का पण्डित ही विवाह कार्य सम्पन्न कराएगा मोलहु पण्डित को बहुत अपमान और शर्मिंदगी महसूस हो रही थी जाने कितने ही विवाह करा चुके थे पुनः उन्होंने वधु पक्ष की महिलाओं की बात को नज़रंदाज़ करते मंत्रोच्चारण शुरू किया पुनः औरतों ने एक साथ बोलना शुरू किया अशुद्धम किम वक्तव्यम पण्डित जी ने आव देखा ना ताव बोल उठे अहम अशुद्धम वक्तयवम जो चाहे कर लो।

वधु पक्ष की महिलाओं ने पण्डित जी के मुंह गाल पर दही पोत दिया और कहने लगी उठो मड़वे से अब वर पक्ष के नौजवानों को लगा कि गांव की बेइज्जती हो रही है उन्होंने इशारे से वधूपक्ष की महिलाओं को मना कर दिया ।

नाराज होकर मड़वे से जाते मोलहु पण्डित से कहा देखा पण्डित जी ज्ञान वही है जिसे जन सामान्य की स्वीकृति सराहना प्राप्त होती है वह ज्ञान व्यर्थ है जो जन सामान्य को स्वीकार्य नही हो क्योकि ज्ञान का सीधा संबंध जनकल्याण से ही होता है यदि उसे ही नही स्वीकार्य होगा तो वह ज्ञान ठिक उसी प्रकार का होगा जैसे #अधजल गगरी छलकत जाय#आम जन स्वीकार्य एव समर्थन का ज्ञान जो उसके लिए हितकारी होता है और ज्ञानी को अहंकार नही होता क्योकि ज्ञान का शत्रु अहंकार है अहंकार रहित ज्ञान ही पूर्ण ज्ञान है पण्डित मोलहु कि आंखों पर अहंकार का पर्दा हट गया।।


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