इज्जत
इज्जत
"आज इस शरीर की पीड़ा सही नही जा रही है। पता नही क्यूं उठा नही जा रहा है ?"
रमा ने अपनी बडी जेठानी से कहा। उसकी आवाज उसके दर्द को बयान कर रही थी,
"क्यू क्या हुआ ?" जेठानी ने धीमे स्वर में पूछा।
"दीदी अगर किसी स्त्री की इज्जत लूट ली जाती है। तो वह समाज में अपराधी दिखाई देता है। लेकिन दीदी मेरा क्या ? जब अशोक शराब के नशे में धूत कमरे आता है आैर कई बार मेरी इजाजत बिना रात में कई बार मुझे तार -तार करता है। तो क्या ? यह अपराध नही है।
इसकी शिकायत अम्मा से की तो अम्मा कहती है,
पति को खुश रखना तुम्हारा धर्म है।
क्या ? मेरी आत्मा की इज्जत जाते नही दिखाई देती। इन्कार करने पर जब वह मुझ पर प्रहार करता है तो क्या ? सुनाई नही देती।
दीदी फर्क इतना है एक स्री बंद कमरे में दरिंदगी सहती और एक स्री इस बनावटी समाज में।
यह सब सुन रमा की जेठानी अपने आंसू पोछते हुए उसे अपने पैरों पर लिटाकर मौन थी कि न जाने ऐसी कितनी रमा और भी होगी।