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लालच की आग में झुलसते फूल

लालच की आग में झुलसते फूल

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माँ बनना हर नारी का सपना और अधिकार भी है, बच्चों की किलकारियों से गूंजता हुआ घर, खुशियों से महकता हुआ आँगन, ऐसे घर की कल्पना हर औरत अपने मन ने संजोये रखती है। क्या गुज़रेगी उस पर अगर उसके सपने और उसके माँ बनने का हक़ ही छिन जाए, उसकी इच्छाओं पर कोई वज्रपात कर दे ? यही तो हुआ है माला के साथ, बिहार में, समस्तीपुर का इलाका और उसके नजदीक एक छोटा सा गाँव, जहाँ के एक गरीब परिवार की बेटी माला के पेट में एक दिन अचानक दर्द होने लगा।

उसके माँ-बाप उसकी ऐसी हालत देख कर परेशान हो गए और जल्दी से उसे नजदीक के एक अस्पताल में ले गए। वहाँ पर डाक्टरों ने भी अपने पेशे के प्रति निष्ठा दिखाते हुए जल्दी से उसे एडमिट कर उसका इलाज शुरू कर दिया।

साँस रोके घबराए हुए उसके माँ बाप घंटों आपरेशन थिएटर के बाहर अपनी बेटी के लिए तड़पते रहे। बाद में डाक्टर ने उन्हें बताया कि उसके गर्भाशय का आपरेशन हुआ है और उसे निकाल दिया गया है, उनकी बेटी अब खतरे से बाहर है। उसके माँ बाप हैरान हो गए, ऐसी क्या बीमारी हो गई थी उनकी कुँवारी बेटी को जो उसकी कोख को ही निगल गई।

माला को जब पता चला की वह कभी माँ नहीं बन पाएगी तब बिस्तर पर ही लेटे हुए उसे अपनी आने वाली काली अँधेरी ज़िन्दगी की तस्वीरें साफ़ साफ़ दिखाई देने लगी। कौन करेगा अब उस अभागिन से शादी ? उसकी आँखों से अविरल आँसूओं की धारा बहने लगी, उसकी सूनी कोख ने उसकी पूरी ज़िन्दगी को ही दागदार कर दिया, उसके साथ साथ उसके माँ बाप भी जवान बेटी के दुःख से दुखी और परेशान हो गए लेकिन अस्पताल में तो डाक्टरों की ही चलती है, उन बेचारे ग़रीबों की सुनता ही कौन है ?

माला के माँ-बाप अपनी किस्मत को दोष देते हुए चुपचाप उसे घर लेकर आ गये। कुछ दिनों बाद मालूम हुआ कि उस गाँव के आस-पास के बहुत से इलाकों की और भी कई बहू-बेटियों के अरमान निकट के कई गाँवों के अस्पतालों की भेंट चढ़ चुके हैं लेकिन वह गरीब लोग समस्तीपुर और उसके आस पास डाक्टरों और बीमा कर्मचारियों बीच हुई करोड़ों रूपये की घिनोनी साज़िश से अनजान अपनी किस्मत को ही कोसते रहे।

सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के लिए राष्ट्रिय स्वास्थ्य बीमा योजना की सुविधा प्रदान की जिसके अंतर्गत गरीबी की रेखा से नीचे रहते हुए लोग अपने स्वास्थ्य के लिए बीमे की राशि के तीस हजार रूपये तक खर्च कर सकते हैं, लेकिन लालची भेड़ियों ने बेचारी कई फूल सी गरीब औरतों की कोख को अपने लालच की भेंट चढ़ा दिया। अपने शिकार की ताक लगाये यह वहशी भेड़िये न जाने कब से उन गरीबों की कोखों पर अपने घर रुपयों से भरते रहे, सरकार की आँखे तब खुली जब बीमा के लाखों, करोड़ों रुपयों के बिल समस्तीपुर और उसके आस पास के अस्तपालों से आने लगे। सरकार ने जाँच के आदेश तो ज़ारी कर दिए और जाँच चल भी रही है, शायद ऐसे घिनोने अपराध की उन्हें सजा भी मिल जाए लेकिन जो फूल इनके लालच की आग में झुलस चुके है उनका क्या होगा, क्या कोई दवा, कोई मलहम उन्हें फिर से पुष्पित कर पाएगी ?


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