गरिमा रिश्तों की

गरिमा रिश्तों की

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हर रिश्ते की अपनी ही एक गरिमा होती है, ऐसे ही एक प्यारा रिश्ता होता है नन्द और भाभी का,बात रक्षाबंधन त्यौहार की है जब मेरी नन्द अपने प्यारे भैया को यानी कि मेरे पति को राखी बाँधने हमारे घर आई। बहुत ही खुशनुमा माहौल था और बहुत  ही स्नेह से मेरी नन्द ने अपने भैया को तिलक लगा कर राखी बाँधी और ढेरों आशीर्वाद भी दिए ,मेरे पति ने भी उसे सुंदर उपहार दिए।

काफी दिनों बाद दोनों भाई-बहन मिले थे इसलिए वह अपने बचपन और घर परिवार की बातें याद करने लगे। मैं भी रसोईघर में जा कर दोपहर के भोजन की तैयारी में जुट गई, तभी मुझे दोनों भाई बहन की जोर जोर से बोलने की आवाज़ सुनाई पड़ी।

मैं भाग कर वहां पहुंची तो देखा कि मेरी ननद अपने सारे उपहार छोड़ कर जा रही थी और मेरे पति भी बहुत गुस्से में अपनी नाराज़गी  जता रहे थे। मैंने अपनी ननद को मनाने और रोकने की भी बहुत कोशिश की लेकिन वह दरवाज़े से बाहर निकल गई। पूरे घर का वातावरण गमगीन हो गया था।

मुझे यह सब देख कर बहुत ही दुख हो रहा था कि राखी वाले दिन उनकी बहन रूठ कर बिना कुछ खाये पिये हमारे घर से जा रही थी लेकिन मैं ठहरी भाभी, नाज़ुक रिश्ता था मेरा और मेरी ननद के बीच। मैंने अपने पति की तरफ देखा, उनकी आँखों में पश्चाताप के आंसू साफ़ झलक रहे थे, मैंने झट से देरी न करते हुए अपनी ननद का हाथ पकड़ लिया। इतने में मेरे पति भी वहां आ गए और उन्होंने अपनी प्यारी बहना को गले लगा कर क्षमा मांगी। दोनों की आँखों में आंसू देख मेरी आँखें भी नम हो गई।

मैंने जल्दी से खाने की मेज़ पर उन्हें बिठा कर भोजन परोसा और हम सब ने मिल कर खाना खाया। सारे गिले शिकवे दूर हो गए और नाराज़गी से भाई बहन के रिश्ते में पड़ी सिलवटें उनकी आँखों से बहते हुए आंसुओं से दूर हो गई थी ।हमारे यहाँ से जाते हुए मेरी ननद ने मुझ से गले मिल कर इस प्यार के रिश्ते की गरिमा बनाये रखने पर अपना आभार प्रकट किया।


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