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हमारी लाडली

हमारी लाडली

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चंचल और चपल

नाजुक और कोमल

मनमोहिनी यही हैं

पहचान हमारी लाडली की 

घर आँगन गुलशन गुलशन

रहे इसके आगमन से

फिर भी समाज को नहीं भाती                                                                                            

जन्म हमारी लाडली की

 

भूल जाते हैं लोग

यही है सृष्टि रचने वाली

इसी ने हमें जन्म दिया

और बढाया घऱ संसार 

 

बालपन में बापू के

आँगन की शृंगार

यौवन में इठलाती चली

अपने बालम के द्वार

इक संसार को सुना कर

चली बसाने अपना घऱ संसार

बाबुल ने किया खुशी खुशी

बिदा अपनी लाङली

यही सदियों से चलती आई संस्कार 

सहमी - सहमी

आँखों में हसीऩ सपने लिए

चली सजाने बालम का घर संसार

नया घर नया परिवेश

जोड़ती हर नये रिश्तों को

खुद को अटूट बंधन में 

 

बालम का हर सपना सजा

मनमोहिनी के आगमऩ से

किया न्योछावर खुद को

सराबोर बलमा के प्यार में 

कच्ची कली खिल गई

बलमा के अधिकाऱ में

नया जन्म पाया

ममता से परिपूर्ण

किलकारियों से गूँजी

खिलीं नये सुमन से

बगिया हमारी लाङली की 

 

 

शोख हसीना बन गई माँ

रात भऱ जागती

करती सेवा अपने बगिया की

भूल अपना साज़ शृंगार

भोर होती किलक़ाऱियों से

कब ढल जाता दिन

प्यार दुलार से सिंचती

अपना घर संसार

भूल अपने बाबूल का संसार

जिस घर में पली बड़ी

वही घर हो जाता परदेश 

 

सुबह से शाम तक

घिरनी सी नाचती

बच्चों को सिंचा

ममता की छावों में

आँख़ों में सपने सजाए

अऱमाऩ लिए खुशियों की

लूटा दि ममता ही हर क़ीमत

कर के समस्त न्योछावर

हमारी लाडली

कितने रिश्तों में ख़ुद को पिरोती

बन जीवनसंगिनी और माँ

बहऩ, भाभी और बहू

 

हज़ार कोशिशों के बाद भी

होती कभी अगर भूल

तो सुन लेती दुहाई अपने संस्कारों की

सुख़ दुःख़ हैं जीवन के दो पहलू

यही सोच फुसलाती ख़ुद को

हमारी लाडली

 

इतने त्याग पर भी

क्या वह सम्मान पाती

घर में बड़ों का शासन

बाहर में ज़ालिम संसार

 

लोगों की ऩजर भेदती

चीरती उसकी छाती

नज़ऱों से बचाती अपने यौवन को

हम भी दोहरी ज़िंदगी जीते

घर घर में पूजते लक्ष्मी और दुर्गा

घर की लक्ष्मी को दुतकारते

जिस जऩनी ने हमें जन्म दिया

क़ोख में उसकी हत्या होती

चाह लिए बेटों की


पर क्या हम सज़ा पाएगें

बेटों का घऱ संसार

बिना जन्म हमारी लाडली की

 

 


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