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प्रायश्चित

प्रायश्चित

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फ्लाइट टेक ऑफ होने से पूर्व ही बेटे शशांक से बात हो गई थी,अतः वह एयरपोर्ट लेने के लिए आ गया था। बेटा यहां बेंगलुरु में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। 6 महीने पहले ही उसकी नौकरी लगी है और वह यहाँ पर अकेले रह रहा है। बेटा पहले से ही एयर पोर्ट पर खड़ा था ।उसने मेरे हाथ से लगेज लेकर गाड़ी में रखा और हम गाड़ी में बैठ गए रास्ते में ही इधर उधर की एक दो छोटी मोटी बातें हुई इसके बाद हम दोनों चुप ही बैठे रहे। वैसे अनेको सवाल थे जो मेरे दिमाग में घूम रहे थे कि पूछूं उसकी जॉब कैसी है उसका समय कैसा कट रहा है इसके अलावा खाना कैसा खाता है पर फ्लाइट की थकान या उसमें चुप बैठे रहने की मजबूरी ने मुँह ऐसा कसैला सा कर दिया था कि मन कुछ भी बोलने सुनने को नहीं कर रहा था इसी उधेड़बुन में कब शशांक के फ्लैट में आ गए पता ही ना चला । शशांक एक बहूमंजिला इमारत में रहता है। वहाँ पहुंचकर लगा मानो किसी बहुत बड़े मॉल में आ गए हों। चारों तरफ इतना साफ सुथरा था गमलों में बहुत ही खूबसूरती से फूल लगे हुए थे कि वे बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे मन कर रहा था की बस उन्हे देखते ही रहो फिर भी पास से हटने का मन न करे । तभी शशांक ने पीछे से हिलाते हुए कहा की मम्मा तुम यहाँ पर भी फूल पौधों को देखने में मग्न हो गई चलो ऊपर ड्राइवर तो कब का सामान ऊपर रख आया । उसके हिलाते ही ऐसा लगा मानो मैं तो यहीँ प्रकृति के बीच खो जाना चाहती थी।

लिफ्ट से जैसे ही बेटे के फ्लैट में पहुंची तो लगा की यह मेरा वो बेटा नहीं है जिसे हर चीज अपनी उचित जगह पर चाहिए होती थी। पूरा घर ऐसे फैला हुआ था जैसे महीनों का बासी और बीमार हो। खैर जैसे तैसे सोफा पर बिखरे कपड़ो के बीच बैठने की जगह बनाई गई सामान रखा , बेटा झट से पानी ले आया और पूछने लगा माँ खाना लगा लूँ क्या बहुत तेज भूख लगी है। मैंने पूछा क्या बनवाया है आज तुमने, बेटा बोला माँ आज तो कुक छुट्टी पर था कल कढ़ी चावल बना गया था माइक्रोवेव में गर्म करके ले आऊंगा, मुझे बेटे की बात सुनकर उस पर बहुत तरस आया, साथ ही अपने अंदर से ग्लानि हुई की क्यों हम भारतीय अपने लड़कों को कुछ भी काम करना नहीं सिखाते। आज अगर इसे कुछ बनाना आता होता तो यह 2 दिन की बासी कढ़ी ना खाता। मेरे बेटे को तो सुबह के नाश्ते के लिए बनी सब्जी भी दोपहर में कभी पसंद ना आती थी, उसके लिए दोपहर में हमेशा ताजी सब्जी ही बनती थी , खैर खाना खाने का तो वैसे भी मन नहीं था अतः वह अपना खाना गर्म करके ले आया व मेरे लिए चाय।

बेटे के खाने के बाद मैंने उससे पूछा की क्या तुम अधिकतर बासी खाना खाते हो , वह बोला क्या करूँ माँ , उसके क्या करूँ शब्द ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया व मुझे मेरी गलती का भी एहसास दिला दिया और मैं मन ही मन कुछ निश्चय करके सो गई। रात को लेटते ही कब नींद आ गई पता न चला। सुबह 5:00 बजते ही आँख खुल गई बेटे के कमरे में गई, वह सो रहा था धीरे से रसोई घर में जाकर गर्म पानी पी कर बालकनी में आकर योग करते हुए नीचे बगीचे की सुंदरता को निहारने लगी एक घंटा कब बीत गया, अंदर आकर फिर वही घर की अस्तव्यस्तता देखकर मन खीज उठा, किचन की सफाई कर ही रही थी कि बेटा उठ गया, मुझे लगा की मैंने उसकी नींद खराब कर दी पर तुरंत एहसास हुआ की नहीं अब वक्त है सही फैसला लेने का।

बेटा बोला माँ तुम क्यों काम कर रही हो यहाँ पर तो आराम से बैठती, मैंने कहा नहीं आज तो तुम्हारे कुक आने से पहले हम दोनों मिलकर नाश्ता बनाएंगे। इतना सुनते ही बेटा खीज कर दूसरे कमरे में चला गया , 10 मिनट बाद ही वह पीछे से आकर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला बताओ क्या करना है मैंने मुस्कुराते हुए कहा चलो दोनों मिलकर तुम्हारे पसंदीदा आलू के पराठे बनाते हैं.....


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