पिज्जा
पिज्जा
बात 90 के दशक के आसपास की है। जून का महीना चल रहा था चार दिन पहले ही मेरी शादी हुई थी। पति ने शादी की पहली रात ही पूछा, "कहीं घूमने जाना चाहती हो ?" मैंने बहुत पहले कहीं सुन रखा था की नेपाल एक बहुत ही खूबसूरत जगह है। मैंने तपाक से नेपाल का नाम लिया। मेरा बचपन और जवानी दोनों ही एक खुशनुमा माहौल में बीते थे। बहुत ऐशो-आराम की जिंदगी तो मैंने नहीं देखी थी और कभी आर्थिक तंगी से भी मेरा कोई वास्ता नहीं पड़ा था। पति ने जैसे ही पूछा, "कैसे जाना चाहोगी ?" कैसे से मतलब था गोरखपुर से होते हुए बस से या रेल से ? मैंने तुरंत जवाब दिया। हवाईजहाज से मेरी इच्छा को पूरा करने करने के लिए पतिदेव बेचारे सुबह उठते ही सबसे पहले अपनी ढाई साल की मेहनत की जमा पूंजी को खर्च करके मेरे लिए हवाई टिकट का इंतजाम करने चल दिए। मैं यह बता दूँ कि नेपाल जाने के लिए कोई पासपोर्ट वगैरा नहीं लगता। शाम को पति ने घर आकर मेरे हाथ में टिकट देते हुए बोला, "अगले 15 दिन बाद के टिकट मिले हैं !" हवाई जहाज से जाने के नाम से ही मेरा दिल मानो बल्ली उछलने लगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे कि एक छोटे से बच्चे को टॉफी की जगह चॉकलेट का पूरा बक्शा मिल गया हो। इतनी खुश उस दिन से पहले मैं कभी ना हुई थी।
दूसरी ओर सासू माँ को जैसे ही हमारे जाने का पता लगा कि, नई-नई बहू ने जो केवल अभी 19 बरस की है, आते ही घर में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए, पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। खैर मैं तो इन सब बातों से अंजान अपने सुनहरे सपनों में खोई हुई थी कि जाने का दिन भी आ गया। मैं पति का हाथ पकड़कर छोटे बच्चे की तरह कंधे पर पर पर्स लटका कर घर से निकल पड़ी। पति बेचारे अटैची बैग उठाए साथ में चल रहे थे। सुबह-सुबह जैसे ही दिल्ली बस से उतरकर हम एयरपोर्ट पहुँचे, 10:30 बज रहा था और भूख भी बहुत जोर से लग रही थी। पता नहीं कि क्या खाएँ ? एक दुकान पर पिज़्ज़ा दिखाई पड़ा जिसका मैंने केवल अब तक नाम ही सुन रखा था, खाया नहीं था। पति देव ने समझ लिया कि इसे जोरों की भूख लगी है। वह पिज़्ज़ा की दुकान पर चढ़ कर बोले, "खाओगी ?" मैंने हाँ में सिर हिला दिया। फिर उन्होंने पूछा, "पहले कभी खाया है ?" मैंने दोबारा में भी हाँ में सिर हिलाया। इसे खाने में परेशानी क्या है, ब्रैड जैसी किसी चीज पर कुछ सब्जी ही तो डाली है। पति ने फिर पूछा, "कितना लूँ ?" मैंने कह दिया, "दो ले लो !" जो केवल एक ही डेढ़ सौ रुपए का था। पति बोले, "ऐसा करो पहले एक ले लो फिर दूसरा खा लेना, अपने लिए काफी और बिस्किट ले रहा हूँ, तुम भी कॉफी ले लो। तो मुझे तो फ्लाइट का नशा सवार था, मैंने कहा, "मैं तो कोल्ड कॉफी लूँगी !" जो मैंने पहले कभी पी नहीं थी। पर पति को व आस-पास के लोगों को ऐसे जता रही थी जैसे ऐसी जगह मैं आती रहती हूँ।
दो पिज़्ज़ा व कोल्ड कॉफी उस समय ₹400 के आए और पतिदेव बेचारे ₹20 की चाय और बिस्किट के पैकेट में काम चलाने की कोशिश में थे। इसके बाद जैसे ही उन्होंने मेरी ओर देखा तो उन्हें लगा पिज़्ज़ा मुझसे खाया ही नहीं जा रहा और मुझे उसे मुँह में रखते ही उल्टी-सी आ रही है। उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, "पहले कभी खाया है ?" अबकी बार मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई। वह बोले, "कोई बात नहीं, मैं तो तुम्हें जिंदगी में पैसे की अहमियत का पाठ पढ़ा रहा था, मुझे तो पहले से ही पता था कि यह दोनों चीजें तुमने पहले कभी खाई क्या देखी तक नहीं है। इसे सामने टेबल पर रखा रहने दो, आओ मेरी चाय में बिस्किट डुबा करके खा लो, क्योंकि अब फ्लाइट का टाइम हो रहा है।" उस घटना के बाद मुझे खुद से इतनी ग्लानि महसूस हुई कि मैं इतने दिनों से उल जलूल फरमाइशें किए जा रही हूँ, पति उसे पूरा करने में बिना एक भी शब्द बोले जान से जुटे हुए हैं। उस घटना ने मुझे सच में बड़ा बना दिया। पति के प्रति लगाव भी अधिक कर दिया। कभी फिजूल खर्चा ना करने की शिक्षा भी मिल गई। आज 30 साल बाद भी अक्सर वह मुझसे पिज़्ज़ा विद कोल्ड कॉफी चलें और ठहाका मारकर हँस पड़ते हैं। वैसे यह चीजें आजकल के बच्चों के लिए नई नहीं रह गई हैं। वह नहीं अपनी रोजमर्रा कि जिंदगी में प्राया खाते ही रहते हैं। मैं भी अपने बच्चों के साथ पिज्जा खाते हुए उस समय को याद करके गुदगुदा उठती हूँ।