वफ़ादार कौन
वफ़ादार कौन
शाम के समय सागरिका और उसके पति चाय पी रहे थे। वह बहुत उदास थी। उसके पति कल शाम चार वर्षीय चार्ली को शहर के बाहर छोड़ आये। छ: महीने पहले वह मासूम उन्हें रास्ते पर घायल मिला था। पता नही क्यों उसका गेंहुआ रंग आँखों को भा गया और उसका भोलापन देख मन पिघल गया। वह उसे गाड़ी में बिठाकर अस्पताल से चेकअप करवाकर घर ले आयी। अफसोस था उसे कि वह शादी के पांच साल बाद भी माँ नही बन पायी। अब चार्ली के आ जाने से उसका सूनापन दूर होने लगा। वह अपना पूरा प्यार दुलार चार्ली पर लुटाने लगी थी।
वह जब आफिस जाती तो वह गाड़ी के पीछे दौड़ता था। वह सोचती थी कि अभी कुछ ही दिन हुए है, पता नही घर वापस जा पायेगा या नही। लेकिन जब जब वह शाम को घर आई तो चार्ली अपनी दुम हिलाते हुए, दोनों पांव उठाकर स्वागत में खड़ा रहता था। उसके आने के तीन महीनों के बाद ही सागरिका की सूनी गोद भर गई थी। पर आज उसके न होने की वजह से घर में सन्नाटा पसरा पड़ा था।
तभी सागरिका की माँ आती हुई नजर आई। उसने बातों ही बातों माँ से पूछा, "माँ, मौसी का गोद लिया बेटा अब तक लौट के आया या नही?
"क्या बताऊँ बेटी, बड़ी लम्बी कहानी है।" माँ ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
"कुछ तो बताओ माँ, आखिर हुआ क्या? तुमने तो सस्पेंस में डाल दिया।" थोड़ा कुरेदते हुए उसने माँ से कहा।
"तेरी मौसी का नसीब खोटा निकला बेटी। बीस वर्ष का अपना जवान बेटा खोकर उसने अठराह वर्ष के अपनी ही जाति के गरीब लड़के को गोद लिया। उसकी रुकी हुई पढ़ाई को पूर्ण करवाया, नौकरी लगवाई। लेकिन बेटी वह तो मुंबई जाने के बाद भूल गया, न कभी मिलने आया, न कभी फोन किया। हाय रे, बेटे का सुख! ", कहते हुए वह बाहर शून्य में ताकने लगी।
"अरे मम्मी जी, कहाँ खो गई आप" सागरिका के पति ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा।
"आपका वफ़ादार चार्ली जरूर आ गया दामाद जी, उधर देखिए" वफ़ादार चार्ली की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा।
सभी उस ओर देखते जहाँ चार्ली दोनों पांव उठाकर दुम हिला रहा था। दोनों पति पत्नी बाहर आकर उसको दुलारने लगे और आँखों से दो बूंद आँसू वफ़ादार के लिए टपक पड़े।