"गीतों भरी कहानी" एक अहसास
"गीतों भरी कहानी" एक अहसास
टीवी पर भूले बिसरे गीत चल रहे थे...
"तुम अगर साथ देने का वादा करो,
मैं यूँ ही मस्त नगमें सुनाता रहूँ।"
सावी यह गीत सुनते ही अतीत की यादों में खोती चली गई।
उसे याद आया गौरव हमेशा उसके सामने यह गीत गुनगुनाया करते थे और वह शरमाकर नजरें झुका लेती थी।लेकिन अब उन्हें उसकी तरफ जी भरके देखने की भी फुरसत नहीं। वह सोचने लगी-
"जाने कहाँ गये वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछायेंगे।"
उनकी शादी को बीस वर्ष हो चुके थे, ऐसा नहीं था कि उनमें कोई अनबन या लड़ाई हो, बस गौरव काम में बिजी रहते थे। कई बार उसकी इच्छा होती कि वह उनकी आँखों में झाँककर कहे-
"सुबह और शाम काम ही काम,
क्यों नहीं लेते पिया प्यार का नाम।"
लेकिन फिर उसका गंभीर चेहरा देखकर हिम्मत ही नहीं कर पाती।
पिछले कई दिनों से उसे कमजोरी और थकान महसूस हो रही थी। आज अचानक ही वह चक्कर खाकर गिर पड़ी। गौरव घर पर ही थे।
उन्होंने उसे उठाकर पलंग पर तो बैठाया लेकिन पास में बैठने की फुरसत नहीं थी।
"अपना ध्यान रखा करो, अब तुम बच्ची नहीं हो, मैं काम करुँ या तुम्हारा ध्यान रखूँ ?"
जैसी कई हिदायतें देकर गौरव ऑफिस के लिये निकल गये।
उसे बहुत दुख हुआ साथ ही गुस्सा भी आया और वह सोचने लगी-
"चाहूंगी मैं तुझे साँझ सवेरे,
फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज मैं न दूंगी।"
सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आँख लग गयी। अचानक फोन की घंटी से उसकी आँख खुली।
"सुनो, जल्दी से पैकिंग कर लो,हमें आज शाम ही कश्मीर के लिये निकलना है।"
सावी आश्चर्यचकित थी। अचानक ये प्लान ! शाम को गौरव घर आये और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोले,
"मुझे माफ कर दो सावी, मैं अपने बिजनेस में इतना बिजी हो गया कि तुम्हारा ख्याल ही नहीं रख पाया।आज से पूरा एक महीना सिर्फ तुम्हारे नाम।"
आज टीवी में वही गाना चल रहा था-
"तुम अगर साथ देने का वादा..करो.....।"
और वह मुस्कराती हुई गुनगुना उठी-
"चलो सजना जहाँ तक घटा चले----!"