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Surendra Arora

Inspirational

4  

Surendra Arora

Inspirational

अमूर्त

अमूर्त

2 mins
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अचानक उसका सामना उस दिव्यात्मा से हो गया , जिसकी कल्पना वह अपने अचेतन में अक्सर किया करता था । उसके दिव्य स्वरूप को स्पष्ट रूप से अपने सामने पाकर वह कोतूहल मिश्रित आश्चर्य में पड़ गया । उसकी तन्द्रा किसी शून्य का अंग बन गयी ।वह समझ नहीं पाया कि क्या कहे या क्या पूछे। 

कुछ क्षणों कि शून्यता के बाद अनायास ही उसके कंठ से एक प्रश्न निकला , " आप और मेरे पास , मेरे सामने ।"

दिव्य मुस्कुराहट उस स्वरूप की पहचान थी , उसी मुस्कुराहट को शब्द देते हुए उस स्वरूप ने कहा , " तुम्हारी अपनत्व से भरपूर संवेदना से निकली ऊष्मा ने मुझे द्रवित कर दिया है । तुम्हारे ह्रदय में , मेरे प्रति उपजे प्रेम का आकर्षण मुझे यहाँ ले आया , ठीक तुम्हारे सामने ।"

"यह सच है कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ परन्तु दिव्ये मैंने तो ऐसा कोई निवेदन आपसे नहीं किया था कि आप साक्षात मेरे सामने उपस्थित हो जाएं , फिर यह अनुकम्पा क्योंकर और किस प्रयोजन से हुई है मेरे सखा ?"

" प्रेम अमूर्त होता है मित्र । वह दिखाई न दे तो इसका यह अर्थ नहीं की वह प्रकट नहीं हो सकता । प्रेम स्वयं में सृजन है । प्रेम उन तरंगों का उद्गम स्थल है जहां से अकूत ऊर्जा की ऐसी धारा का उद्घोष होता है , जो पूरे ब्रह्माण्ड को सकारात्मक रूप से उर्जित कर देती है । इसी सकारात्मक ऊर्जा के कारण अमूर्त , मूर्त में परिवर्तित हो जाता है और मैं स्वयं तुम्हारे सामने उपस्थित हुआ हूँ , प्रिये ।" 

वह चित्र में परिवर्तित हो गया । एकटक स्थिर भाव से अपने अमूर्त को निहारता रहा । न जाने कितने युग बीत गए और उसे पता ही नहीं चला कि वह तो स्वयं ही उसका अंश बन गया है । अब वह अपने अमूर्त रूप से कभी अलग नहीं होगा ।



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