कागज़ की कीमत
कागज़ की कीमत
कागज़, कोरा कागज़ देखने में जितना सरल है, जितना निश्चल है ,जितना साफ है, वास्तव में ऐसा नहीं है। इस कागज़ पर न जाने कितने इतिहास, कितना ज्ञान, कितने एहसास, कितनी भावनाएं , कितना क्रंदन, कितना प्रेम, कितना जोश, कितने भाव, कितना अपनापन, कितना धोखा , कितने संदेश, कितने समर्पण, कितने आदेश, कितने निर्णय, कितने परिणाम सुरक्षित रखे गए हैं जो भविष्य के लिए एक धरोहर है।
यह कागज़ एक माध्यम है हमारे देश की सभ्यता, हमारे देश की संस्कृति को सुरक्षित रखने का और उस प्रत्येक कागज़ की कीमत बहुत अधिक है, उसे शब्दों में या उसे मूल्यों में नहीं तोला जा सकता और यही कागज़ का टुकड़ा जब मुद्रा (रुपये) बन जाती है तो बहुत कुछ खरीदने का दमखम रखती है। यही कागज़ है जो अपनों को, अपनों से अलग कर देता है, दुनिया से पहचान करवाता है और बहुत कुछ दे जाता है और बहुत कुछ ले जाता है। ये दुनिया है, कागज़ की दुनिया, जहां हर चीज लिख कर दिखाई जाती है उसी की कीमत होती है। इसलिए कागज़ साफ़ और साधारण नहीं बहुत मूल्यवान है। समय इसको अनमोल बना देता है और यह कागज़ है जो हर चीज को धरोहर में तब्दील करके उसे अमर कर देता है। इसलिए यह कागज़ साधारण नहीं अनमोल है।
समय रहते इसकी इसकी कीमत पहचाने और इसकी कीमत को इंसानों से बढ़कर ना लगाएँ । इंसान और उसकी रिश्तों और उसकी भावनाओं से बढ़कर कोई चीज़ नहीं है। कागज़ की कीमत भी होती है परंतु उसकी कीमत तभी है जब हम इसका सही इस्तेमाल करें। इसलिए मानवीय गुणों के साथ कागजी कीमत को ना तोले। कागज़ के गुणों को अंगीकृत करते हुए अपने गुणों में इज़ाफा करें। मानवीय धर्म अपनाएं और उसे अमूल्य बना दें कागज़ पर लिखे इतिहास की तरह ।