सुनो.......तुम करो वादा

सुनो.......तुम करो वादा

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एक कवि की कल्पना, एक लेखक की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए वह अपनी कल्पना में क्या सोचता है, किसका सृजन करता है इसके बारे में कई बार वो स्वयं भी नहीं जान पाता ।इसलिए मैं अपने वादे के लिए किसी इंसान के बजाय उस सृष्टि के रचयिता से ही अपनी बात कहना चाहती हूं, क्योंकि मेरा सोचना थोड़ा अलग है कि क्यों ना हम अपनी इच्छाएं,अपनी आकांक्षाएं, अपना दु:ख, अपनी संवेदनाएं उस ईश्वर से ही साझा करें जो बदले में केवल शांति, सुकून,आलंबन और आशीर्वाद ही प्रदान करता है। ना कि वक्त आने पर हमारा ही मजाक उड़ा देता है जो कि इंसानी फितरत है ।

हम जानते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर कण-कण में विराजमान है। ईश्वर का साकार, साक्षात रुप है यह अथाह समुद्र, यह विशालकाय पर्वत श्रृंखला, यह अविचल, अविरल धारा, ये अनन्त क्षितिज यह सब उसी का ही तो प्रमाण है , और सबसे जीवंत प्रमाण तो हम स्वयं है कि जिस में इतना कुछ उस ईश्वर ने डाला है कि एक जीवन भी उसके बारे मे समझने के लिए कम है। यदि हम यह महसूस करें कि जब हम बहुत प्रसन्न होते हैं तो हमारा मन हिलोरे लेता है कि हम अपनी खुशी को अधिक से अधिक उसके साथ बैठे जो हमारी खुशी को दुगना करें तो इस अवस्था में प्रकृति हमारे साथ हमारी खुशी को दुगना कर के हमें लौटाती है।

 आपने कभी सागर की लहरों को देखा है? यदि हम खुश हैं तो वह और उफन- उफन कर हमारी खुशी में लहरा कर नाचने का एहसास कराती हैं और हमें यह बताती हैं कि देखो.....हम तुम्हारी खुशी से कितने प्रसन्न है ।

 इसके विपरीत यदि हम दुखी हैं ,खिन्न है , अकेले हैं तो मानो बार-बार आकर हमें आलिंगन करते हुए सांत्वना प्रदान करती हैं कि..... कोई बात नहीं यही दुनियां है, ये इसी तरह ही चलती है। मेरे (समुद्र के) मेरे पानी को ही देखो न.... न जाने कितने के आंसुओं को पी कर ही नमकीन हुआ है। इसलिए धैर्य रखो...... सब ठीक हो जाएगा... और थोड़ी देर  में ही हम इन लहरों का सानिध्य पाकर अपने आप को शांत पाते हैं।


 आप कितने ही लोगों के बारे में जानते होंगे जो दोनों ही अवस्थाओं में प्रकृति के सानिध्य में रहना पसंद करते हैं क्योंकि एक ईश्वर ही सत्य है, प्रामाणिक है ,आदि अनंत है, यह हम सबका है और यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हम सब ही उसके ना आज तक हुए हैं ना भविष्य में हो सकेंगे, क्योंकि पूर्ण समर्पण जिन्होंने भी किया है वह बहुत कम है ।


कुछ लोग ईश्वरीय सत्ता को मानते ही नहीं और कुछ ऐसे हैं जो अपने जन्म, अपनी क्षमताओं, को अपनी उपलब्धियों को केवल अपने से ही संबंधित मानते हैं और इसका श्रेय केवल स्वयं को देते हैं। इसमें उन्हें किसी का सहयोग, किसी का आशीर्वाद, किसी की तपस्या, किसी का देवत्व नजर ही नहीं आता है। 

खैर... जाने दो।

 यहां बात सिर्फ मेरी और मेरे परम मित्र ईश्वर की है। जहां वह मेरे इतने निकट है कि मैं उनसे अधिकार से भी बहुत कुछ कह सकती हूं। वह मेरे अपने हैं जिनसे लिपट कर मैं रो सकती हूं। जिनको मैं अपने आसपास महसूस कर सकती हूं ।यह एक भाव है, एक पागलपन है जिसे समझने के लिए उच्च कोटि की संवेदना, सुकोमल हृदय, पवित्र भावनाएं, निष्ठा, भक्ति और समर्पण चाहिए ।

..तो मैं अपनी बात कहना चाहती हूं अपने परम मित्र ईश्वर से कि सुनो ; तुम करो वादा ....

तुम तो सर्वशक्तिमान हो, तो आज मुझसे यह वादा करो कि तुम जब भी नई सृष्टि की रचना करो तो उसमें इंसान को इतना ज़हरीला ना बनाना जितना वह बन चुका है ।तुम वादा करो मुझसे कि ऐसे इंसानों को इस धरती पर जन्म ही नहीं दोगे जो केवल स्वार्थी हैं, केवल अपने ही बातें करते हैं ,अपने ही कामों के प्रति सचेत हैं, आत्म प्रशंसा के अतिरिक्त उन्हें कुछ आता ही नहीं।वे इतने निष्ठुर हैं कि किसी इंसान की भावनाएं, उसकी सेवा, उसकी निष्ठा, उसका भोलापन ,उसकी निश्चल संवेदनाओं को एक पल में कुचल कर रख देते हैं वह भी इतने नुकीले कीलों से कि लहूलुहान कर के रख देते हैं।

 तुम वादा करो..... मुझसे अपनी इस नई सृष्टि में उन इंसानों को जन्म नहीं दोगे जो दरिंदे हैं, छोटी बच्चियों को नोच खाते हैं, विक्षिप्त मानसिकता के शिकार हैं। तुम वादा करो..... अपनी नई दुनिया में उन लोगों को जगह नहीं दोगे तो अपनी वासना के लिए,क्षणिक शारीरिक आनंद के लिए अपनी संतान को प्लास्टिक की थैली में जिंदा ही फेंक देते हैं। तुम्हारी इस अनूठी, अप्रितम, अतुलनीय सृजन शक्ति का इतना घिनौना रूप सामने लाते हैं।एक जीव को, एक जीवन को इस दुनिया में लाकर कुत्तों के खाने के हवाले कर देते हैं ।कूड़े के ढेर में तुम्हारे ही स्वरूप को फेंक देते हैं, क्योंकि बच्चे तो साक्षात भगवान का ही स्वरूप होते हैं। अपने जिगर के टुकड़े को स्वयं से ही दूर कैसे कर लेते हैं ये लोग?

 तुम वादा करो मुझसे..... अपनी इस नई दुनिया में कहीं भी धोखा, फरेब नहीं होगा। इंसान को इंसान समझा जाएगा क्योंकि आज के हालात तो ऐसे हैं कि....


 "कहीं गीता में ज्ञान नहीं मिलता, कहीं कुरान में ईमान नहीं मिलता,

 अफसोस तो है कि इस दुनियां में 

इंसान को, इंसान में, इंसान नहीं मिलता"।


 उस दुनियां में जहां रिश्तो की, भावनाओं की कद्र होगी। जहां कान खजूरे की टांगों की तरह उतने ही लोगों के दंश नहीं होंगे, क्योंकि सांप और बिच्छू के डंक और जहर से तो बचा जा सकता है क्योंकि उनका ज़हर दिखाई देता है परंतु इंसानी ज़हर आत्मा को छलनी कर देता है ।मैं बहुत परेशान हूं तुम्हारी इस दुनियां से जहां आप इतना पाप, इतना धोखा, इतना छल भरा हुआ है कि हिंसक जानवरों से तो बचा जा सकता है परंतु जो इंसानों का ही शिकार करें उनसे कैसे बचा जाए? तुम ही बताओ .....


अब तुम जो कहोगे मैं जानती हूं ......

 तुम कहोगे कि मैंने तो यह सृष्टि बहुत सुंदर, निर्मल, निश्चल ही बनाई थी। परंतु तुम इंसानों ने ही इसे अपने कर्मों के द्वारा ऐसा बनाया है। जहां मेरा कीर्तन, मेरा नाम लेकर कितने गलत काम किए जाते हैं। मुझे 'बनाते' हो, मुझे ही सजाकर बाजार में बेचते हो, भला कौन ऐसा है जो मुझे 'बना' सके? मेरा 'निर्माण' कर सके? मेरी बोली लगा सके? और मेरी कीमत में भी मोल - भाव करते हो।

 किस में इतनी हिम्मत है कि मुझे पैसों में खरीद सके ?अरे मैं तो केवल श्रद्धा, भक्ति, भाव और प्रेम से ही बिक जाता हूं ।परंतु इन सब केआभाव में तुम कलयुगी मानवों ने मेरा कितना मजाक उड़ाया है?...... तुम अपराधी होकर भी मेरा स्वरूप होने की घोषणा करते हो........ और स्वयं भगवान होने के दावे करते हो....... क्या मैं ऐसा हूं? .......तुम मेरी शक्तियों का इतना दुरुपयोग करते हो, मेरा कितना दोहन करते हो। मुझ पर पत्थर फेंकते हो। परंतु मैं तो फिर भी तुम्हें मधुर फल ही देता हूं, और क्या - क्या बताऊं तुम्हें। यदि मैं बोलने पर आया तो तुम कोई भी नहीं सुन पाओगे .......।

इसलिए सिर्फ इतना ही कि यह सब तुम्हारे कर्मों का फल है और इस धरती को तुमने ही ऐसा बनाया है, मैंने नहीं।


 मैं जानती हूं तुमने जो कहा है, सब सत्य है। पर मेरे परम मित्र, मेरे आधार ,मेरे आराध्य.... इसलिए इतना होने के बाद भी तो सिर्फ तुमसे..... और सिर्फ तुमसे ही तो यह कह सकती हूं कि अगली सृष्टि में इंसान बनाना ही नहीं क्योंकि केवल वही ऐसे हैं जो सब दूषित करते हैं। मैं यह भी जानती हूं कि बहुत से अच्छे लोग भी हैं जो अपना जीवन मानवता, वैश्विक मूल्यों पर, प्रकृति प्रेम, भाईचारे पर ही ने न्यौछावर कर देते हैं। पर इनकी संख्या बहुत कम है क्योंकि यही तो पृथ्वी की धुरी कहे जा सकते हैं। तभी तो पृथ्वी निराधार, निरंतर घूम रही है।

 पर तुम वादा करो..... यदि ऐसे ही दुनिया बनाओगे तो ठीक है वरना फिर उसमें भी यही सब व्याप्त हो जाएगा और जितनी तकलीफ मुझे हो रही है उससे ज्यादा तुम्हें होगी। पर तुम तो बर्दाश्त कर लोगे पर शायद मैं ना कर पाऊं.... क्योंकि मैं थक चुकी हूं दोगले इंसानों से ,इस नकली हंसी से, इस झूठी शख्सियतों से।

 मैं नहीं चाहती इस दुनिया में रहना...

 तुम वादा करो मुझसे.... मुझे अपने साथ ही रखोगे ,अपने पास ही रखोगे, जब भी मैं आऊंगी तुम्हारे पास मुझे अपनी बाहों में भर कर अपने अनंत वक्षस्थल से जुदा मत करना। मुझे अपने पास ही रखना और नई दुनियां में इंसान मत बनाना और बनाना तुम्हारी मजबूरी हो तो कृपया मुझे इंसान नहीं बनाना। कुछ भी बनाना पर इंसान नहीं ।

नहीं झेल पाऊंगी दोबारा से यह सब। मैं टूट जाऊंगी, बिखर जाऊंगी। तुम तो सब समझते हो ना..... तुम तो मेरे अपने हो ना..... फिर तुम ऐसा नहीं करना..... तुम करो वादा कि मुझे फिर छलने के लिए नहीं छोड़ोगे। खुश रखने के झूठे वादे करने वालों से तुम मुझे बचाओगे। तुम अपने पास ही मुझे रखना... वहीं जहां झूठ फरेब, धोखे यह सब ना हो।

 जहां अनंत ,अगाध प्रेम हो.... निष्कपटता हो..... निश्छलता हो..... मासूमियत हो..... भावनाएं हो.....आलिंगन हो..... स्पंदन हो...., खुशी हो,.... आत्मा हो,..... चेतना हो....... स्पर्श हो.... समर्पण हो..... भाव हो..... एकैक्य हो..... सरलता हो...... सहजता हो......साम्य हो...... अनंतता हो..... और वो सब सिर्फ तुम्हारे पास है..... तुम्हारे साथ है..... इसलिए तुम करो वादा .. कि...


 बस मीरा की तरह तुम में ही समा जाऊं..... तुम में खो कर, तुमको ही पा जाऊं....

 बस तुम करो वादा.... तुम करो वादा...... 



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