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शिक्षा

शिक्षा

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आज सुबह चाय पीते हुए अख़बार में कहीं पढ़ा की भारत में 65% लोग अपनी कमाई का 50% हिस्सा अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं। 50%! सचमुच! विश्वास करना मुश्किल था। फिर मेरे ध्यान में आया की मेरा 3 वर्षिय बेटा जो अभी नर्सरी में है, उसकी स्कूल की सालाना फी सवा लाख रूपये है और यातायात को मिलाके ये करीब दो लाख रूपये सालाना है। मैं सोचने पे मजबूर हो गयी कि क्या ये सचमुच उपयुक्त है ?

क्या शिक्षा पे अभी से इतना ख़र्च आवश्यक है ? क्या इतने खर्च से वाकई में मेरे बेटे का भविष्य उज्जवल बनेगा ? मैं इन ख्यालों में डूबी हुई थी कि इतने में दरवाजे की घंटी बजी। जाके देखा तो मेरे यहाँ काम करने वाली बाई लक्ष्मी आयी थी। मैंने उस से पूछा, “आज एक घंटा पहले कैसे आ गयी।”

लक्ष्मी ने उत्तर दिया, “मेमसाब आज मुझे थोड़ी जल्दी है। मेरे बेटी के स्कूल फी जमा करवाने और नयी पुस्तके लेने जाना है।” मैंने कहा ठीक है। लक्ष्मी ने फिर नम्रतापूर्वक कहा, “मेमसाब आपसे एक और विनती थी। क्या स्कूल खर्च के लिए मुझे इस माह की तनख्वा पहले मिल सकती है ? मैंने उत्तर दिया, “क्यों नहीं, अवश्य, पर एक बात बताओ अगर तुम अभी सारी तनख्वाह स्कूल में खर्च कर दोगी तो आगे घर कैसे चलाओगी ?"

मैं ये बात जानती थी की लक्ष्मी का पति बुरी आदतों में घिरे होने के कारन घर खर्च में लक्ष्मी का सहयोग नहीं देता है। उसने नम आँखों से कहा, “घर खर्च का क्या है मेमसाहब, कुछ भी रुखा-सूखा खा कर दिन निकाल देंगे। इसे पढ़ाना-लिखाना सबसे जरुरी है। मैं नहीं चाहती इसका भविष्य भी मेरी तरह हो। अगर ये कुछ बन जायेगी, तो मेरी मेहनत सफल हो जायेगी।” ये कहकर लक्ष्मी अपने कार्य में लग गयी।

मुझे ये सब सुनकर बहुत अफ़सोस हुआ। एक तरफ लक्ष्मी अपनी बेटी को एक छोटी सी स्कूल में शिक्षित करने के लिए दिन रात मेहनत करती है। अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा वह उसके बेटी के उज्जवल भविष्य के लिये लगाती है। और एक तरफ हम अपने बेटे को समाज में हमारे नाम के लिए इतनी महंगी स्कूल में पढ़ाते हैं। सफल तो वो किसी भी स्कूल से पढ़ाई करके बन सकता है। फिर मैंने एक निर्णय लिया। मैंने लक्ष्मी को बुलाया और पैसे देते हुए विनम्रता से कहा, “ये लो 5000 रूपये। ये तनख्वाह नहीं है, ये तुम्हारी बेटी की स्कूल फी और पुस्तकों के लिए है और आज से तुम्हारी बेटी का सारा पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊँगी। ये सुनते ही लक्ष्मी की आँखों से ख़ुशी के आँसू छलक उठे और उसने मुझे बहुत धन्यवाद और आशीष दिया।


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