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बेटी

बेटी

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लड़की बचाओ, देश बचाओ, बेटी को पढ़ाओ जैसे नारे टी वी सोशल मीडिया पर देखने की अब हिम्मत न रही है। उसमें उसे तो हर कोई उसकी ओर घूरता नजर आता है, मानो कह रहा हो लड़की होकर तुम्हारी हिम्मत कैसे कि पढ़ लिख ली, उस पर दुकान खोल कर सर उठा कर चल रही। बजाय कि उसकी हिम्मत की दाद देने के हर कोई उसकी हिम्मत तोड़ने को तैयार है चाहे वो बैंक का बड़ा अधिकारी हो या साधारण सेल्स मेन। नाम से वह लावण्या है और उसका चेहरा मोहरा इस नाम को सार्थक भी करता है उम्र 22 साल, पिता गरीब, गाँव के बीच बाजार में पुराने जमाने के रेडियो रिपेयरिंग की दुकान चलाते रहे, रेडियो बंद होने के साथ साथ दुकान भी बंद हो गई , 4- 5 बच्चे और उनका पालन पोषण पिता के लिए पहाड़ तोड़ने जैसा होता जा रहा था। ऐसे में सबसे बड़ी लावण्या ने एक फैसला लिया और ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद बन्द पड़ी पिता की दुकान चलाएगी इसके लिए बैंक से लोन लेकर ई मित्र खोलने का विचार उसे उपयुक्त लगा।

पढ़ाई और दुनियादारी में होशियार लावण्या ने भाग दौड़ आरम्भ की, और बैंक से लोन लेने में सफल रही, दुकान पर काम शुरू करने से पूर्व वह अपने गाँव की सबसे बढ़िया मोटर सर्विस सेंटर में मेल के जरिये काम करके सभी ग्राहकों के सम्पर्क सूत्र भी एकत्रित करती रही ताकि दुकान चलाते समय उसके काम आ सके, दो साल तक अपनी दुकान के लिए खूब मेहनत कर रही लावण्या को अपने मेहनत का फल मिलने लगा और कमाई होनी आरम्भ हो गई। इसी बीच लावण्या के आचार व्यवहार पर अंगुलिया उठने लगी, जीवन जीने का संघर्ष उतना कठिन नही रहा जितना अब उस संघर्ष से बाहर आकर अपनी जगह बनाने हेतु लोगो के लांछन सहने पर कठिन लग रहा। दुकान और उसके बाहर हर रोज ऐसे युवको का जमावड़ा खड़ा रहता जहाँ लावण्या को निकलते - जाते समय रोज कुछ न कुछ सुनना होता है।

बैंक अधिकारी का उसे लोन देने का मकसद भी यही था, वही दुकान के लिए फाइनेंस कंपनी के एक छोटे एम्प्लॉई द्वारा उसके फोन नम्बर लेकर दिन रात उसे फोन करके तंग करना प्रारम्भ कर दिया है, एम्प्लॉई ने न बल्कि लावण्या के नम्बर अपने सभी मित्रों में बांट दिए, साथ ही उसे फोन पर मैसेज करना , लगातार फोन करना, दिन रात छींटा- कशी सुनाना अब आम हो गया है।

लावण्या का तेज दिमाग अब थकने लगा, एक ओर से जूझना आसान होता है मगर चारों तरफ से लगने वाले तीरों का सामना उसके लिए दूभर होता जा रहा था। माता पिता घर मे प्रवेश करते ही शादी न होने उलाहना देकर अपना फर्ज पूरा कर देते, बैंक अधिकारी को लोन देने के साथ भविष्य में उम्मीद है कि लावण्या का लावण्य उसे भी कभी प्राप्त होगा, वही आस पास के युवकों को उसके धराशाई होने की उम्मीद अब भी बाकी है, और यह सच भी है बेटी बचाओ कहने वाला देश मे करोड़ो में से एक आदमी भी बेटी बचाने को आगे आने को तैयार नही दिख रहा, जो स्वाभिमान से अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है, एक बार आत्महत्या करने का निर्णय कर लेने वाली लावण्या जाने कब तक बची रहेगी, जाने कब बेटियां अपने हिम्मत का परिचय देकर अपनी पहचान निडर होकर बनाएगी, यह देश सिर्फ फेसबुक पर भावुक होता है, शायद यहाँ के नागरिक सोशल मीडिया पर बेहद सोशल होते है, यहां बैठी दुनिया भर की महिलाएं  कैम्पेन चला कर #me too के साथ अपने साथ घटी घटनाएं पोस्ट करती है मगर लावण्या की जिंदगी उसे गाँव के सामाजिक दबावों के चलते हेश टेग मी टू से दूर ही रहने की चेतावनी देते।

सच्ची कहानियों का अंत सदैव सुखद नही होता क्योंकि वहाँ गलत व्यक्ति की गलत क्रिया कलापो की सेल्फ़ी शायद कही पोस्ट नही होती।  


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