Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

ashok kumar bhatnagar

Inspirational

4  

ashok kumar bhatnagar

Inspirational

ज़रा याद करो उनकी कुर्बानी

ज़रा याद करो उनकी कुर्बानी

5 mins
400



            ‘हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌’ या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त करेगा अथवा विजयश्री प्राप्त कर पृथ्वी का राज भोगेगा। गीता के इसी श्लोक को प्रेरणा मानकर भारत के शूरवीरों ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को पाँव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया था।

           कारगिल युद्ध में जो जीवन के तीस बसंत भी नहीं देख पाए थे ,और मातृ भूमि के लिए शहीद हो गए , उनमे से कुछ के बारे में आज बात करते हैं। 

      

    स्‍क्‍वाड्रन लीडर अजय आहूजा :27 मई 1999 को कारगिल में संघर्ष के दौरान ही इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) का मिग-21 क्रैश हो गया था. इस जेट को उड़ाने वाले स्‍क्‍वाड्रन लीडर अजय आहूजा की पाकिस्‍तान के सैनिकों ने बड़ी बेदर्दी से हत्‍या कर दी थी. आज तक इसे एक कोल्‍ड ब्‍लडेड मर्डर कहा जाता हैं.


          कैप्टन सौरभ कालिया : भारतीय थलसेना के एक अफ़सर थे जो कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सिक्योरिटी फोर्सेज़ द्वारा बंदी अवस्था में मार दिए गए। गश्त लगाते समय इनको व इनके पाँच अन्य साथियों को जिन्दा पकड़ लिया गया और उन्हें कैद में रखा गया , जहाँ इन्हें यातनाएँ दी गयीं और फिर मार दिया गया।


     कैप्टन मनोज कुमार पांडेय : भारतीय सेना के अधिकारी थे जिन्हें सन १९९९ के कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया | मनोज पांडेय की टुकड़ी सियाचिन की चौकी से होकर वापस आई थी और तभी 3 मई 1999, को कारगिल युद्ध का संकेत मिल गया. और इस वीर योद्धा ने आराम की बात भूल फिर से तैयार हो गया दुश्मनों को धुल चटा ने के लिए. वो पहले अफसर थे जिन्होंने खुद आगे बढ़ कर कारगिल के युद्ध में शामिल होने की बात कही थी.

             अगर बो चाहते तो उन्हें छुट्टी भी मिल सकती थी क्युकी वो अभी अभी सियाचिन की चौकी से होकर आये थे, पर देश प्रेम का जज्बा उनके खून में भरा था और उन्हों ने इस युद्ध के लिए आगे आये और अपने जीवन के सबसे निर्णायक युद्ध के लिए 2 - 3 जुलाई 1999 को निकल पड़े. इस युद्ध के दौरान उनका प्रमोशन दिया गया था उन्हें लेफ्टीनेंट से कैप्टन मनोज कुमार पांडेय बना दिया गया था.

             उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। वे 24 वर्ष की उम्र जी देश को अपनी वीरता और हिम्मत का उदाहरण दे गए।कारगिल युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता हैं।

         मेजर पद्मपनी आचार्य एमवीसी :भारतीय सेना में एक अधिकारी थे उन्हें 28 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान अपने कार्यों के लिए मरणोपरांत भारतीय सैन्य सम्मान, महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया।मेजर पद्मपनी आचार्य ,पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए कारगिल के 'तोलोलिंग' में शहीद हो गए थे. इस दौरान वो केवल मेजर आचार्य को उनकी इस शहादत के लिए मरणोपरांत भारतीय सेना के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था. कारगिल युद्ध के दौरान वो अपनी यूनिट की एक टीम को लीड कर रहे थे.

          मेजर पद्मपनी आचार्य का जन्म 21 जून 1969 को हैदराबाद में हुआ था. वो मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले थे, लेकिन उनका परिवार हैदराबाद में रहता था. हैदराबाद की 'उस्मानिया यूनिवर्सिटी' से स्नातक करने के बाद पद्मापणि 1994 में भारतीय सेना में शामिल हो गये. 'ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकेडमी',मद्रास से ट्रेनिंग लेने के बाद पद्मपनी को 'राजपूताना रायफल' में कमीशन मिला. 


         कैप्टन अनुज नैय्यर :7जाट के भारतीय सेना के अधिकारी थे, जिन्हें कारगिल युद्ध में अभियानों के दौरान युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत 1999 में भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया

कैप्टन अनुज नैयर की सगाई हो गई थी, 2 महीने बाद शादी होनी थी; शहीद होने से पहले अकेले 9 दुश्मनों को ढेर कर दिया था

           तारीख 6 जुलाई 1999, 17वीं जाट बटालियन को पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ ने की जिम्मेदारी मिली। टीम की कमान 24 साल के कैप्टन अनुज नैयर के हाथों में थी। वे अपनी टीम को लेकर जंग के लिए निकल पड़े। दुश्मन हजारों फिट ऊंची चोटी पर कब्जा जमाए बैठे थे, वे वहां से सीधे अटैक कर रहे थे और आसानी से हमारी फौज को देख सकते थे। इसलिए दिन में चढ़ाई करना खतरे से खाली नहीं था।

         शाम ढली तो अनुज की टीम ने चोटी पर चढ़ना शुरू किया। भूख-प्यास की परवाह किए बगैर वे आगे बढ़ते रहे। जब वे करीब पहुंचे, दुश्मनों ने फायर करना शुरू कर दिया। इधर से अनुज की टीम ने भी अटैक किया। दोनों तरफ से लगातार फायरिंग होती रही। दुश्मनों की संख्या भी अधिक थी और उनके पास पर्याप्त मात्रा में बड़े हथियार भी थे। अनुज के कई साथी शहीद हो गए, लेकिन वे जान हथेली पर रखकर आगे बढ़ते रहे। जख़्मी होने के बाद भी उन्हों ने एक के बाद एक 9 दुश्मनों को ढेर कर दिया। पाकिस्तान के तीन बड़े बंकर तबाह कर दिए।


         कैप्टन बत्रा : पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कैप्टन बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बढ़े और बिना शत्रु को भनक लगे हुए नजदीक पहुंच गए। कैप्टेन बत्रा अपने साथियों के साथ दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण कर दिया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने की लड़ाई में चार दुश्‍मनों को मार डाला।कैप्टन बत्रा की बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया.



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational