sachin kothiyal

Drama

5.0  

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Drama

मूसलाधार वर्षा

मूसलाधार वर्षा

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टप टप टप की लगातार आवाज के साथ मेरी नींद रात के लगभग 12 बजे खुली।

आज की इस रात मैंने जल्दी सोने का फैसला किया था ताकि सुबह जल्दी जाग सकूँ। क्या है कि बायोलॉजिकल क्लॉक खराब हो चुकी थी। खिड़की से बाहर झांका तो मूसलाधार बारिश के साथ बाहर छत से गिरने वाले पानी की आवाज जोरों से सुनाई दे रही है।

एक ठंडी हवा के झोंखे ने मेरी उबासी और नींद को पूरी तरह खत्म कर दिया। बहुत दिनों बाद बारिश को इस तरह देख रहा था और ये बारिश इसके लिए तो कितना इंतजार करना पड़ा पर आखिरकार बाहर चल रही ठंडी हवा के झोंखों ने गर्मी से राहत दिलवा ही दी है।

रात का वक़्त बारिश के शोर के सिवाय कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है और ये बारिश मुझे अपने शोर के आगोश में भी एकांत का भाव दे रही है जैसे कि इसके शोर में कुछ जादू हो इस शोर से तो मैं बचपन से परिचित था। जब घर में मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर नहीं होते थे तब इस बारिश के शोर को इस तरह से सुना करते थे जैसे कोई संगीत हो और ये सिलसिला घण्टों चला करता था। पानी की बूंदों का पानी से भर चुके आंगन में गिरने की आज भी तस्वीर मन में बसी है। कभी मजबूरी तो कभी मन बहलाने का यही तो एक साधन था हमारे पास इसलिए शायद इस शोर से इतना प्यार है ये शोर ध्यान खींच ही लेता है।

खो जाता हूँ इस तरह के मौसम में और वो अहसास जैसे सामने ही उमड़ आता है।

मेरा गांव जो पहाड़ों पर बसा है उसमें एक सुंदर सा घर जिसके ऊपर हल्के लाल रंग की टिन लगी हुई है बारीकी से बनाये साधारण दरवाजों पर गाढ़ा भूरा रंग किसी को भी अपनी ओर खींच लेता है। बारिश के बाद पहाड़ कितने स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं मेरे घर से। एकदम साफ जैसे धूल की चादर हटा दी गयी है और सामने चमकता हिमालय अखंड दीर्घ खड़ा हुआ जैसे कि इससे विराट कुछ है ही नहीं।

सारी मुसीबतें सारी परेशानियाँ दूर दूर तक इसके सामने नज़र नहीं आती। उस पर सफेद बर्फ हरे विशाल पहाड़ों की मखमल सी घाटियों के बीच से निकलते गधेरे पर मानो बिम्ब सा बनाती है। गधेरे(छोटी नदी) का पानी तेजी से पत्थरों पर से उमड़ता उछलता हुआ इतनी तेजी से बहता है कि सफेद दिखाई देता है और बादलों के छोटे छोटे झुंड कुछ पहाड़ों के ऊपर तो कुछ पहाड़ों के नीचे किस तरह से तैर रहे हैं। कल्पना करने पर उस तरह से उस अहसास को जीवित रख पाना उतना ही मुश्किल है जितना कि बारिश की बूदों से उठे उस बुलबुले को जीवित रख पाना । बाहर बादल जोरों पर बरस रहे हैं शायद सुबह की धूप के साथ मन से यादों के बादल भी छंट जाएंगे और उमड़ेंगे फिर कभी ऐसी ही किसी रात की मूसलाधार बारिश में.....।



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