मैट्रो
मैट्रो
कोई भीड़भाड़ वाला बड़ा शहर है तो
शायद वह महानगर "मैट्रो" कहलाता है
जहां खुदगर्जी के दूषित वातावरण में
इंसानियत का दम रोज घुटता जाता है
इंसानी जहर से जहां वृक्ष तक मर जाते हैं
संवेदनहीन माहौल में इंसा पत्थर बन जाते हैं
जहां लालच का पर्दा है मुखौटे पर मुखौटा है
अपनों ने अपनों को ही जी भरकर लूटा है
कितने पैदा होते हैं कितने मरते हैं पता नहीं
इस नर्क में क्यों खिंचे आते हैं लोग, पता नहीं
यहां पर सड़कें जाम में फंसकर घिसट रही हैं
मौका ताकती मौत इंसान की ओर झपट रही है
निराशा के वातावरण में मैट्रो एक उम्मीद है
तनाव भरे वातावरण में सुख की एक नींद है
जब खंभों पर दौड़ती है तो हवाईजहाज सी लगती है
और जब टनल से गुजरती है तो पनडुब्बी सी लगती है
इससे न जाने कितने लोग "मैट्रो फ्रेंड" बन जाते हैं
मैट्रो में रोजाना आते जाते दो दिल भी जुड़ जाते हैं
तेज गति, समय की बचत, ट्रैफिक जाम से राहत दिलाती है
महानगर के दिल की धड़कन है ये मैट्रो
ये जब आती है तो सबकी बाछें खिल जाती है।
श्री हरि
