शान ए वतन
शान ए वतन
सिन्दूरी सुबह की लालिमा, धानी चुनर सँवारती
सीने सरिता अविरल, मस्तक हिमालय धारती।
दुनिया में सबसे श्रेष्ठ ज्येष्ठ विशेष हैं माँ भारती
सौ सौ नमन इस देश को उतारें इसकी आरती।
मनोहरिणी ऋतुऐं अनूठी आती धरा पर झूमकर
चंदन सी माटी को मस्तक पे धारे चूमकर।
स्वर्णिम धरा की झाँकिया थकता नमन करते बयां
बारिशें मकरन्द की झूमते पीपल पलाश कूँजती जब कोकिला।
आंतक करना चाह रहा खंडित धूमिल प्यारी माला
कुचल धरो फन विषधर के, ले लो शिवाजी का भाला।
जो भूले यहाँ बलिदानों को स्मृति उन्हें दिलाना है
इस देश में सब लक्ष्मीबाई विवेकानंद महाराणा हैं।
एक अकेली रानी ने गोरों को धूल चटाई थी
शिशु बाँध पृष्ठ भाग पर समरांगण में आई थी।
उस हिंसक दुर्जनता को अब समय सबक सिखलाना है
भूली परिपाठी अपना कर इतिहास पुनः दोहराना है।
कोमलता का भाव त्याग अब रोद्र रूप अपनाना होगा
हुआ शौर्य लुप्त शिव राणा का फिर से वापस लाना होगा।
अगर महाप्रलय भी आ जाए, संकल्प अजय अखंड रखना
माँ के टुकडे न हो पाए, पथ नील गगन लहराता परचम रखना।
अब दर्प मिटा दो दुश्मन का सभ्यता यही पुकारती
सौ सौ नमन इस देश को उतारें इसकी आरती।
साँसों में वन्देमातरम् उद्घोश जय हिंद हो
धरती बने फिर से दुल्हन सरताज सबका हिंद हो।