तेज़ाब
तेज़ाब
कुछ ग़लत कहूँ तो बताना
गर लगे ग़लत कुछ तो बताना
नूरानी चेहरा,
रानाई चेहरा सलौना चेहरा,
जमालाई चेहरा
रुख़सार पे सुर्ख़ लाली
जैसी पंखुड़िया गुलाब की
और हुआ जब दीदार
सानी मैं लम्हे सा ठहरा,
हवाओं सा ठहरा
बस एक टक था,
मेरी आँखों का पहरा
इक शाम बड़ी बेपरवाही में
इज़हार-ए-दिल कहा
पर उसे इज़ाज़त कहाँ
इनकार की है किसने दिया,
उसे हक़-ए-इनकार
उसने ख़ता तो कुफ़्र सी की है
ज़िद मेरी नालाज़िम अना की थी
और सब ख़ता तो उसकी थी
फेंक डाली मैंने आधी शीशी तेज़ाब की,
ना रहने दिया मैंने वो नूरानी चेहरा,
रानाई चेहरा, सलौना चेहरा,
जमालाई चेहरा जला दिया मैंने
इक मासूम सा चेहरा
कुछ ग़लत किया तो बताना
गर लगे ग़लत कुछ हुआ तो बताना
मग़र एहतियात से जवाब देना
आधी शीशी तेज़ाब की
अभी बची हैं मेरे पास।