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Deepanshu Hooda

Tragedy

4.6  

Deepanshu Hooda

Tragedy

अंदर है कुछ

अंदर है कुछ

2 mins
242


अंदर है कुछ , 

कुछ अजीब सा मन, 

किस किस से लड़ूँ ? कौन हैं दुश्मन ? 

कोशिश कर चुकामैं ,लाख समझाने की , 

पर तुम ज़िद्द पर अड़े हो मेरी लाश सजाने की   


गलती मेरी थी,मैं मानता हूँ ।

पर अब तो माफ़ करो ,मैं माफ़ी भी मांगता हूँ।

मेरा दम घुटता है नहीं रहा जाता ,

तुम समझने की कोशिश करो ,

मुझे कुछ समझ नहीं आता।


तुमने कहा था मुझसे , खुश देखना चाहते हो।

अब क्या हुआ ? अब खुद ही मुझे पल पल मार रहे हो।

मुझे वक़्त चाहिए थोड़ा सा ,

मैं वो कर दूंगा जो किसी ने नहीं किया।

वादा है मेरा , रिहा करदो  

तुम्हे मुझपे इतना भी भरोसा नहीं है क्या ?


मै सोता नहीं हूँ आज कल रातो को भी ,

आँखों से आंसू भी देखे नहीं होंगे कभी।

छुप - छुप कर रोयामैं , 

परेशानी छुपा के थक गया मैं,

हर चहेरे के आगे मुस्कुरा कर।

मैंने इतनी हिम्मत से आके सब कुछ तो बता दिया था।

तुमने झूठ बोल कर ठुकरा दिया था ।

मुझे लगा था तुम समझ जाओगी और मेरा साथ दोगी।


मुझे लगा था तुमको मेरी फ़िक्र सबसे ज्यादा है ,

पर उस दिन पता चला ये समाज तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा है।

ज़िद्द करी तुमने भी ,मैं ने भी काफी ज़िद्द करी।

मैंने मेरी हालत ज़ाहिर की , कितनी दफा तो उफ़ करी।


थोड़ा समझने के बाद मुझको लगा , मेरी बात पर गौर करोगी ।

हर बार मेरी उम्मीद से अलग हो , हर बार ही कुछ और करोगी ।

मै साथ नहीं मांग रहा था ,मैं वक़्त मांग रहा था ।

मुश्किल इसमें क्या थी ?मैं कोनसा तुमसे जन्नत मांग रहा था ।


मै टूटा था उस दिन काफी , जो बेवजह की सजा दी ।

वैसे खुद भी तकलीफ होगी बाद में ।

अभी तो मैं ही झेलूँगा आज आंसू मेरे दिखे नहीं ।

कल को अपनी गलती का पछतावा तो होगा ।


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