अंदर है कुछ
अंदर है कुछ
अंदर है कुछ ,
कुछ अजीब सा मन,
किस किस से लड़ूँ ? कौन हैं दुश्मन ?
कोशिश कर चुकामैं ,लाख समझाने की ,
पर तुम ज़िद्द पर अड़े हो मेरी लाश सजाने की
गलती मेरी थी,मैं मानता हूँ ।
पर अब तो माफ़ करो ,मैं माफ़ी भी मांगता हूँ।
मेरा दम घुटता है नहीं रहा जाता ,
तुम समझने की कोशिश करो ,
मुझे कुछ समझ नहीं आता।
तुमने कहा था मुझसे , खुश देखना चाहते हो।
अब क्या हुआ ? अब खुद ही मुझे पल पल मार रहे हो।
मुझे वक़्त चाहिए थोड़ा सा ,
मैं वो कर दूंगा जो किसी ने नहीं किया।
वादा है मेरा , रिहा करदो
तुम्हे मुझपे इतना भी भरोसा नहीं है क्या ?
मै सोता नहीं हूँ आज कल रातो को भी ,
आँखों से आंसू भी देखे नहीं होंगे कभी।
छुप - छुप कर रोयामैं ,
परेशानी छुपा के थक गया मैं,
हर चहेरे के आगे मुस्कुरा कर।
मैंने इतनी हिम्मत से आके सब कुछ तो बता दिया था।
तुमने झूठ बोल कर ठुकरा दिया था ।
मुझे लगा था तुम समझ जाओगी और मेरा साथ दोगी।
मुझे लगा था तुमको मेरी फ़िक्र सबसे ज्यादा है ,
पर उस दिन पता चला ये समाज तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा है।
ज़िद्द करी तुमने भी ,मैं ने भी काफी ज़िद्द करी।
मैंने मेरी हालत ज़ाहिर की , कितनी दफा तो उफ़ करी।
थोड़ा समझने के बाद मुझको लगा , मेरी बात पर गौर करोगी ।
हर बार मेरी उम्मीद से अलग हो , हर बार ही कुछ और करोगी ।
मै साथ नहीं मांग रहा था ,मैं वक़्त मांग रहा था ।
मुश्किल इसमें क्या थी ?मैं कोनसा तुमसे जन्नत मांग रहा था ।
मै टूटा था उस दिन काफी , जो बेवजह की सजा दी ।
वैसे खुद भी तकलीफ होगी बाद में ।
अभी तो मैं ही झेलूँगा आज आंसू मेरे दिखे नहीं ।
कल को अपनी गलती का पछतावा तो होगा ।