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जुनून अब माँगी का तप रहा

जुनून अब माँगी का तप रहा

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जुनून अब 'माँगी' का तप रहा सीने में आग बनके धड़क रहा !

बुझा चिराग हवाओं के ज़ोर में पर लावा बनके राख हुई गर्म फिर से !!

जान लगा दूं या जाने दूं पर हर बार कुसूर हवा पर न थोपूं !

एक दिन बनु के वास्ते हर दिन कुछ करुँ जो उस दिन खुद को खुद पर न थोपूं !!

सोच - सोच में फिर अफसोस रह जाएगा उम्र जब हौले से गुज़र जाएगी

आज की सुबह फिर शाम होकर कल में ढल जाएगी, राह तेरी यूं ही गुज़र जाएगी 

राह से भटकाते हज़ार मिलेंगे बहाने, पर सोच लिया गर कुछ करके ही जाना है

राह से भटकाते बहानों में एक कतरा मोल मंजिल का भी सोच लेकर चलना है

लीक न हो जाए बात - तेरा जुनून तेरा पागलपन 'कलम' ही है 

गर बदंगी को ही चूमना है 'माँगी' तो सुकूँ दिल का निचोड़ ले !

छोड़ दे सोनीपत के सपने हार मान कर कलम छोड़ बैठ जा !!

तड़प छुपी है तेरे सीने में लाखों उम्मीदें दबी पड़ी हैं तेरे आलस्य में !

कदम बढ़ाचल फासले शिकायतों के हूबहू हो जाएंगे मंजिल बीच राह में खड़ी पड़ी तड़प रही है

एक आगाज कर तेरी आवाज़ में खुद की औकात तलाशने की

मिसाल बनकर जल मशाल की तरह अंधेरे को दूरकर उजारा फैला तेरे नाम का

सुबह की पहली किरण में 'दफा ए आलस' कर पैगाम 'लेखक' का लिख !

शाम की आरामी चैन में 'कलम' से कर्म लिख पैगाम 'सपने' का लिख !!



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