कहाँ गए वे दिन
कहाँ गए वे दिन
कहाँ गए वे दिन,
जब बच्चे पढ़ते कम, खेलते ज्यादा थे,
जब दादी की कहानियाँ नींद को बुलाती थी,
जब त्यौहार पूरा परिवार मानाता था,
जब दुख हमारा नहीं,पराया होता था।
कहाँ गए वे दिन,
जब जीवन की रफ़्तार धीमी होती थी,
जब हर छोटी बात का गहरा अर्थ होता था,
जब जीवन ख़ुशियों से भरा होता था,
और जब प्रेम सबसे उच्च स्तर पर होता था।