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अनुरोध श्रीवास्तव

Inspirational

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अनुरोध श्रीवास्तव

Inspirational

चिरैया की पाती

चिरैया की पाती

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खपरैल के घरों में

दीवारों के आलों में

धरन पर,मुंडेर पर

खिड़कियों पर

कच्ची दीवार की खोखलों में

नीड़ था मेरा

तिनका-तिनका लाकर

बनाया था उसे मैंने।


चीं-चीं करते थे मेरे बच्चे

जब मैं

लाती थी दाना

चोंच में भरकर

खुश होता था तुम्हारा भी बचपन

मुझे देखकर।


पकड़ भी लेते थे तुम मुझे

कभी-कभी

और रंगकर गुलाबी रंग से

खुश हो लेते थे

पूरा घर आंगन मेरा था।


आज हैं

कंक्रीटों की ऊँची अट्टालिकायें

साफ और चमकीली खिड़कियां

उसमें

मेरा प्रवेश वर्जित

विकिरण फैलाते

ऊँचे-ऊँचे टावर

जहरीली हवा

दम घोंटते रहते हैं मेरा।


जानती हूँ

तुम भी नहीं होगे खुश

उड आयी हूँ दूर देश मैं

उसी तरह जैसे

रोजगार की तलाश में तुम

चले गये हो

सूना छोडकर घर आँगन।


मेरी पुरानी पड़ोसी बयां

लगाती थी घोंसला

नीम के, बेर के पेड़ पर

और करती थी उसमें

जुगनूँ से प्रकाश

फुदकती थी चिड़िया।


बरसात के महीनों में

चलती थी हवा

बरसता था पानी

चीं-चीं करती चिड़िया

झूलती थी झूला


और खुश होते थे तुम

कभी झूलता घोंसला देखकर

कभी टूटा घोंसला उठाकर

अब न वो नीम का पेड़ रहा

न वो बयाँ।


आखिर क्यों

और कब तक

हम बेजुबान

और पेड़ पौधे

चढ़ें विकास की भेंट।


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