भगतसिंह नें देखा
भगतसिंह नें देखा
रात भगतसिंह मुझे सपने में मिले
कहा मैनें देखा आज का भारत
झूठ,फरेब और भ्रष्टाचार का बोलबाला हर तरफ
अंग्रेजियत हावी भाषा,समाज और शिष्टाचार
सब विकृत करनें को विकास
मनुष्य,मनुष्य को निगलनें को आतुर
क्या इसी दिन के लिए मैनें फोड़ा था असेम्बली में बम
तभी सुखदेव नें उन्हें टोका
भले गिरावट आयी है लेकिन
अभी भी भारत में है सहिष्णुता,प्रेम और लोकतंत्र
जिस आजादी को हम ब्याहनें गये थे
वो हो रही है पल्लवित/पुष्पित
राजगुरू नें कहना शुरू किया
लेकिन अभी है बाकी बहुत कुछ
ले जाना होगा अभी तिरंगे को उस ऊँचाई पर
जहाँ सितारे भी लगनें लगे नीचे
बहाना होगा आशाओं का सिंधु और संस्कारों का पंचनद
बहानी होगी पारदर्शिता की गंगा
प्रेम की यमुना और ज्ञान की सरस्वती
तभी होगा आजादी का सपना साकार।
