बेटियाँ..
बेटियाँ..
परंपरा... ओस की एक बूँद सी होती हैं बेटियाँ।
स्पर्श खुरदरा हो तो रोती हैं बेटियाँ।।
रोशन करेगा बेटा तो एक ही कुल को।
दो-दो कुल की लाज होती हैं बेटियाँ।।
कोई नहीं है दोस्तो! एक दूसरे से कम।
हीरा अगर है बेटा, तो मोती हैं बेटियाँ।।
काँटों की राह पे खुद ही चलती रहेंगी।
औरों के लिए फूल बोती हैं बेटियाँ।।
विधि का विधान है यही समाज की है परम्परा।
अपने प्यारों को छोड़, पिया के घर जाती हैं बेटियाँ।।
बेटी धन पराया होती, यह मैं सुनता आया।
दर्द बिदाई का क्या, आज समझ में आया।।
गम और खुशी का रिश्ता कैसा यह अजीब है भाई।
मेरी परछाई मुझसे ले रही विदाई...