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अजय शुक्ला

Drama Inspirational

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अजय शुक्ला

Drama Inspirational

नई दुनिया

नई दुनिया

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तुम पिंजरे में खुश

होने का चेहरा लगाए

खुश हो अपनी ज़िंदगी से

समेट लिया है

अपना दायरा

पिंजरे के मामूली तारों तक

अब तो पिंजरा भी खुला है

फिर भी तुम्हे खुले

आकाश में नही

इस पिंजरे में ही

सुख की नींद आती है

सामाजिक बंधन और सुरक्षा

तुम्हे इससे आगे

सोचने भी नही देती

तुम फिर भी

उड़ना चाहती हो

आकाश , प्रकृति की

सुंदरता के लिए

विचरना चाहती हो

सभी की तरह

और यह आज़ादी

औरो की तरह

तुम्हे भी मिलनी ही चाहिए

निष्पक्ष रूप से ,अधिकार है

अधिकार है तुम्हारा

किन्तु

भोग की वस्तु बना कर रख दिया है

लोगो ने तुम्हे सिर्फ

अपने फायदे के लिए

तुम भी आदी सी हो गई हो

और इसी भोग को और संसार को

आगे बढ़ाने के लिए अपने आपको

धन्यवाद देते हुए लिप्त हो गई हो

भोग के रोगियों के जाल में


मुक्त हो सकती हो तुम्हे

इनसे सतर्क होना होगा

स्त्री मात्र साधन नही

यह बताना होगा

स्त्री शक्ति है स्त्री सहचरणी है

खरीदी कोई वेश्या नही

सड़क पर चलते सिर्फ

आकर्षण का केंद्र नही

स्त्री अस्मिता है, देवी है

स्त्री पुरुषो की तुलना में

अधिक शक्तिशाली है

यह तुम्हे बताना होगा

और इस चंगुल से निकल

अपना नया समाज बनाना होगा

जहाँ सामाजिक दायरे तुम्हारे होंगे

नैतिकता दोनों पक्षों में बराबर होगी

राम की मर्यादा भी होगी

सीता का सतीत्व भी होगा

हाँ

तुम्हे आगे बढ़ना होगा

पिंजरे को छोड़

अपनी नई दुनिया में

बसना होगा

अपनी नई दुनिया में

बसना होगा...!




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