क्या करूँ आखिर एक इंसान हूं मैं
क्या करूँ आखिर एक इंसान हूं मैं
नहीं हो सकता सबके लिए एक जैसा
थोड़ा सा भला और शायद थोड़ा बुरा हूं मैं
आखिर एक इंसान हूं मैं
कभी अनजाने में , कभी होश में
कर देता हूं कुछ खतायें
किये हैँ कुछ वादे अपनों से
निभा रहा हूं उनसे वफ़ाएं
अब तो इल्म भी नहीं है मुझको
ना जाने कब से बस यही कर रहा हूं मैं
क्या करूँ, आखिर एक इंसान हूं मैं
बुराई बर्दाश्त नहीं है मुझे
ना देखा जाता है किसी का ग़म
पर होते देखता हूं जब कोई अन्याय
औरों की तरह मेरे कदम भी जाते है थम
बनकर ख़ामोशी से हिस्सा भीड़ का
होंठ सीए सब देखता रहता हूं मैं
क्या करूँ, आखिर एक इंसान हूं मैं
पूरी शिद्दत से, अपना काम कर रहा हूं
रख सकूँ खुद को और अपनों को खुश
यही कोशिश कर रहा हूं
हार, जीत, मौत, ज़िन्दगी
नहीं हैँ मेरे हाथ में
कोशिश करना जानता हूं
बस वही किये जा रहा हूं मैं
क्या करूँ,आखिर एक इंसान हूं मैं
