ज़िन्दगी और सर्कस
ज़िन्दगी और सर्कस
"तुम्हें मालूम है आज शाम को हम सर्कस देखने जा रहे हैं।" वो अपने दोस्तों को बहुत ही चाव से बता रहा था। पहली बार सर्कस देखने को लेकर उसमें बहुत उत्साह था। "वही वाली सर्कस जो बड़े वाले मैदान में लगी है? वो तो बड़ी मशहूर सर्कस है। उसमें तो बहुत सारे जोकर, जानवर और कलाकार हैं।" उसके दोस्तों ने उसकी जिज्ञासा को और बढ़ा दिया। अब तो सर्कस देखने के लिए उससे शाम का इंतेज़ार नहीं हो रहा था। तभी स्कूल की घंटी बजी और छुट्टी हो गयी। वो स्कूल से बाहर निकला और उछलते हुए घर की और जाने लगा। उसके साथ साथ गले में टंगी पानी की बोतल और पीठ पर टंगा बस्ता भी खुशी से उछलने में उसका साथ दे रहे थे। खुशी से झूमते हुए वो घर पहुंचा और फटाफट से नए कपड़े पहन कर सर्कस जाने के लिए तैयार हो कर बैठ गया। बेसब्री से घड़ी की ओर देखने लगा। कब शाम के 5 बजेंगे और हम सर्कस देखने जाएंगे। पर समय कहाँ किसी के लिए अपनी चाल बदलता है। समय आने पर 5 बज गए और वो दरवाज़े पर खड़े हो कर घरवालों का इंतज़ार करने लगा। आखिरकार वो सर्कस देखने के लिए घर से निकल पड़े। आज रास्ते में दिखने वाली हर एक चीज़ उसे खुशी दे रही थी। गर्मियों की ढलती हुई शाम की ठंडी ठंडी हवा, घरों को वापिस उड़ते हुए पक्षी, बाज़ार की रौनक। सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था। कुछ देर में वो सर्कस पहुँच गए।
"वाह! कितना अदभुत दृश्य है। विशालकाय टैंट, जगमगाती लाइटें, लोगों की भीड़, खाने पीने के सामान वाले ठेले...और वो देखो खिलोने वाला और गुब्बारे वाले भी कितने हैं!" बचपन की ये छोटी छोटी खुशियां ही इंसान को जीवन भर मुस्कुराहटें देतीं रहतीं हैं। उन्होंने सर्कस के अंदर प्रवेश किया। जैसी किसी नई दुनिया में आ गया हो। हर तरफ रंगीन चमचमाते सितारों जैसी रोशनियां और आकर्षक कपडों में सजे धजे कलाकार। सभी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए। सर्कस शुरू हो गयी। कितने सुंदर कलाकार और जानवर हैं यहाँ। कितने सलीके से इनकी बात को मान रहे हैं। तभी बीच में कई सारे जोकर घुस आए और ऊटपटांग हरकतें करके दर्शकों का मनोरंजन करने लगे। 2 जोकर आपस में लड़ने लग पड़े और लड़ते लड़ते एक ऊंची जगह पर चढ़ गए। हे भगवान अब ये दोनों क्या करेंगे। दोनों एक दूसरे को थप्पड़ मारने लग गए। दर्शक और हंसने लगे। तभी एक ने दूसरे को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया। नीचे लग नेट से उछल कर वो जोकर फिर ऊपर आ गया और अपने मुँह से पानी की बौछार दूसरे के मुँह पर गिरा दी। "हा हा हा...देखो कैसे उसने दूसरे जोकर को गीला कर दिया" हंसते हंसते उसकी आँखों में पानी आ गया। सच में सर्कस कितनी मज़ेदार होती है। पूरे शो में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हुआ।
शो खत्म हो गया। "चलो सभी आईसक्रीम खाते हैं" वो भी साथ में खुशी खुशी चल पड़ा। आईसक्रीम खाते हुए उसका ध्यान सर्कस के टैंट के बगल में गया जहाँ कुछ कलाकार घूम रहे थे। "अच्छा तो ये लोग यहाँ रहते हैं" उनको देखने की इच्छा में वो टैंट के पिछले हिस्से की ओर चल पड़ा। सर्कस के "पीछे" वाले हिस्से में कई छोटे छोटे मैले कुचैले तंबू लगे हुए थे जिनमें से अजीब सी दुर्गन्ध भी आ रही थी। तंबुओं के पास ही कुछ बंजारन औरतें खुले आसमान के नीचे चूल्हे पर खाना बना रही थीं। आस पास उनके दुबले पतले अधनंगे बच्चे खेल रहे थे। उसने आसपास निगाह दौड़ाई। कुछ लोग घेरा बनाकर लूडो खेल रहे थे। "अरे ये तो वही जोकर है" उसके चेहरे पर उसको देखते ही हंसी आ गयी। उसके बालमन में खुशी की लहर दौड़ गयी। ये जोकर तो सच में बहुत हँसाता है। इसे पास में जाकर देखता हूँ। ये सोचकर वो आगे बढ़ा और उस जोकर के पास जाकर खड़ा हो गया। जोकर का ध्यान उस पर नहीं गया। पर वो एकटक उत्साहित होकर उस जोकर को देखे जा रहा था।
"कितना अच्छा इंसान है ये, कितना हँसाता है सबको, मेरी तो आंखों में पानी ही आ गया था हंसते हंसते, इसके करतब कितने मज़ेदार..." "अबे ओए.... कौन है तू? क्या कर रहा है इधर?" अचानक उसका भ्रम टूटा। जोकर उसकी तरफ गुस्से से देख रहा था। "जुबान है तेरे मुँह में या गूंगा है!" जोकर फिर चिल्लाया। "जी..वो..मैं..आप अंदर इतना हंसा रहे थे..तो मैने आपको इधर देखा तो आपको देखने आ गया।" "अच्छा... फिर से करतब देखने आया है...तेरे बाप की सर्कस है क्या? चल भाग यहाँ से..भाग!" जोकर और भी गुस्से में आ गया। उसका मुँह रुआंसा हो गया। डरते डरते वो पीछे की और मुड़ने लगा तभी पीछे से माँ ने आके उसे पकड़ लिया और गुस्से से बोली "हम तुझे कहाँ कहाँ ढूंढ रहे थे और तू यहाँ खड़ा है चल जल्दी घर भी जाना है।" "पर माँ वो जोकर सर्कस के अंदर इतना हंस रहा था और हम सबको भी हंसा रहा था और यहाँ वो कितने गुस्से में मुझ पर चिल्ला रहा था। ऐसा क्या हो गया था उसको? माँ बताओ ना?" माँ चलते चलते उसके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सोचती रही। फिर कदमों की गति बढ़ाते हुए बोली "बेटा ये उनकी रोज़ी रोटी है और रोज़ी रोटी कमाने के लिए इंसान को बहुत किरदार बदलने पड़ते हैं।" उसका भोला बालमन इतनी बड़ी बात को समझ नहीं पा रहा था। लेकिन वर्षों बाद जब वो अपनी रोज़ी रोटी कमाने के लिए घर से निकला तो उसे माँ की कही वो बात समझ मे आई और वो हंस दिया। मगर ये हंसी सर्कस वाली हंसी से कुछ कम थी।