आपका अपना घर है
आपका अपना घर है
पुराने घर को मरम्मत की ज़रूरत थी। इसलिए किराये का मकान ढूंढना था। और वो भी अपने ही मोहल्ले में ताके सामान लाने ले जाने में ज्यादा दिक्कत ना हो। काफी ढूंढने पर भी जब कोई ढंग का मकान ना मिला तो थक हार के बैठ गए। "अब कहाँ ढूंढें? मोहल्ले में तो कोई मकान मिल नहीं रहा... बाहर देखना पड़ेगा।" वो अपनी माँ से बोला। "एक बार मोहल्ले के किसी पुराने आदमी से पता कर लेते हैं..हो सकता है वो कोई मकान बता दे जो हमारे ध्यान में न हो" माँ ने कहा। "हम्म.. ऐसा ही करते हैं"।
फिर वो मोहल्ले के एक पुराने बाशिंदे बिटटू के पास गए जो उन्हें काफी अच्छे से जानता था। "अरे... धन्यभाग हमारे जो मैडम जी आप हमारे गरीब खाने में पधारे। आइए...आइए! अरी भागवान चाय पानी लेकर आओ।" उन्होंने बहुत प्रेम से दोनों का स्वागत किया "हुकम कीजिये मैडम जी कैसे आना हुआ"। "हम एक घर किराये पर लेने के लिए ढूंढ रहें हैं, आपकी नज़र में कोई हो तो बताइए।" "हाँ मैडम जी है ना अपने वो मिसेज़ शर्मा उन्होंने नया घर ही बनाया है, मैं अभी उनको बुला लेता हूँ।" उन्होंने मिसेज़ शर्मा को बुलाया जो थोड़ी देर में आ गयीं। "अरे मैडम जी कितने दिन हो गए आपसे मिले हुए..कैसी हैं आप?" मिसेज़ शर्मा बोलीं। "बस सब अच्छा है आप सुनाइये" माँ बोली।
"बस आपका आशीर्वाद है मैडम जी..आपके दर्शन हो गए हमारा दिन सफल हो गया। गुज्जु से पूछिए कितने दिन हो गए उसे कहते हुए के चलो किसी दिन मैडम जी से मिल के आते हैं.. बस आप जानती ही हैं इसके पेपर चल रहे थे..और इनका भी काम थोड़ा मंदा चल रहा था...और वो जो अपनी रज्जो थी ना..उसके भाई की भी शादी आ गयी...कितने दिन उधर लग गए। लेकिन मन मे था.. बहन जी से मिलना है और देखिए भगवान ने आज मिला दिया। और वो बंटी कह रहा था के पीछे आप बीमार हो गयी थीं? अब कैसी है आप?
"आप सब इतना प्रेम सत्कार करते हो इसीलिए तो बच गए वरना इस बार नंबर लग गया था मेरा। बस समझ लीजिए ऊपर वाले ने बचा लिया।"
"हैं? क्या हो गया मैडम जी?"
"बुखार इतना के क्या बताऊँ.. उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था"
"अरे मैडम जी आजकल पता ही नहीं चलता बुखार का तो...अपना ध्यान रखा कीजिये...आपके आसरे पर तो हम बैठे हैं। और सेवा बताइये "
"हमें आपका घर चाहिए किराये पे कुछ समय के लिए"
"अरे मैडम जी इसमें पूछने की क्या बात है..घर आपका है जब मर्ज़ी आप आ जाओ। हम कौन होते हैं आपको रोकने वाले।"
"वो तो आपका बड़प्पन है बहन जी आप इतना प्यार जो करते हो। मुझे तो पहले ही बिट्टू ने कहा था के शर्मा जी मना नहीं करेंगी।"
"मैडम जी मना बाहर वालों को करते हैं... आप तो हमारे घर के सदस्य हैं। लो बताओ...अब हम अपने घर के लोगों को नहीं आने देंगे वहाँ तो किसको आने देंगे।"
"शुक्रिया बहन जी..हम अगले महीने की पहली तारीख को सामान रख देंगे।"
"मैडम जी आप आज ही रखो...कल किसने देखी है। हैं? आपका अपना मकान है।"
"ठीक है बहन जी..बस हमें घर की चिंता थी जो अब दूर हो गयी अब और नहीँ भटकना पड़ेगा घर ढूंढने के लिए"
"मैं क्या बोलती हूँ मैडम जी मकान आपके लिए हाज़िर है। आपका अपना मकान है। कोई बाहर के थोड़ी हैं आप। और सेवा बताइये।"
"किराया भी बता दीजिए।"
"मैडम जी कर दी ना फिर वही बात। आपका अपना मकान है। अब हम आपसे किराया लेंगे बताओ।"
"नहीँ बहन जी किराया तो देना ही है... वो तो आपका प्यार है आपका बड़प्पन है।"
"मैडम जी ज़िन्दगी में सिर्फ एक प्यार और इज़्ज़त ही तो कमाई है हमने.. है ना। पैसे का क्या है...ये तो आनी-जानी चीज़ है। मकान तो आपका अपना ही है ये समझलो बस"
"ठीक है बहन जी.. वो दरअसल बिट्टू कह रहा था के आपने किराया 7000 रखा है?"
"हांजी मैडम जी 7000 ही है।"
"7 तो ज्यादा है।"
"(हीहीही)... मैडम जी आप सामान रख लो आप चिंता क्यों करते हो"
"5 करलो"
"6500 ठीक है"
"नहीं ये भी ज्यादा है"
"चलो आप 6 कर दो"
"ना आपकी ना मेरी 5500 बस खत्म बात"
"नहीं जी वारा नहीं खायेगा इतने में"
"अब इतना तो लिहाज कर लो बहन जी...क्यों के मकान तो हमारा अपना ही हैं।
.......(हा हा हा हा) और सभी ज़ोर से हंस पड़े।
"अर्रे लो चाय भी आ गयी" बिट्टू बोला। और सभी मुस्कुराते हुए चाय की चुस्कियां भरने लगे।
