यात्रा विचारों की
यात्रा विचारों की
(वह उस दिन अपने टूटे हुए मन में विचार कर रहा था।...)
भाग्य तथा धन इन दो पहलुओं के बिना जीवन की मुद्रा व्यर्थ है। एक दिन प्रयत्न करने से यश अवश्य प्राप्त होगा, परंतु तब तक प्रयत्न करने से भी समय को नहीं रोक सकते।
प्रकाश के शोध में थक जाने के पश्चात, अंधकार के व्यतिरिक्त दुसरा कोई विश्रांत नहीं है। प्रकाश की ऊष्मा में जलने से अच्छा अंधकार अधिक सुरक्षितता की अनुभूति देता है।
अंत ही पूर्णता का अंतिम चरण है। उपहास के हास्य में शुद्ध जल की भाँति मन की वाणी सदा दबी रहती है।
(वह अपने विचार चक्र में विक्षिप्त हो रहा था, परंतु उसी क्षण उसकी आत्मा उससे कहने लगी।...)
कभी-कभी मृत्यु पश्चात जीवन की तुलना में मृत्यु से पूर्व जीवन ही अच्छा होता है। जीवन की कोई इच्छा नहीं है, परंतु ईश्वर द्वारा दिए गए जीवन के वरदान का अपमान भी नहीं करना चाहिए।
परिस्थितियों के जल में उपहास का विष प्राशन करना अथवा उसमें स्वयं का नाद निर्माण करना इसका निर्णय अपना है, परंतु जल के प्रवाह को रोकने का कोई उपयोग नहीं है। प्रवाहमय जल ही सदा शुद्ध होता है।
यह हमारा निर्णय है कि हम स्वयं प्रकाश बनें या प्रकाश का शोध करने व्यतिरिक्त स्वयं के भीतर प्रकाश उत्पन्न करने वाली अग्नि को प्रज्वलित करें, परंतु हमें अंधकार को भी नहीं भूलना चाहिए।
समय थमता नहीं है, चाहे कितना भी समय लगे, परंतु यह परिवर्तित हो ही जाता है। मन और वैराग्य के सामने धन और भाग्य का कोई मूल्य नहीं है। एक मुद्रा के रूप में बिकने या आभूषण के रूप में रखने से पाषाण बनना अच्छा है, जो कम से कम मूर्ति के निर्माण हेतु उपयोगी आता है।
(इस कारण वह मन के विचारों में फंसने के स्थान में आत्मा के विचारों को एक रस्सी बनाकर टूटे हुए मन को जोड़ने लगा।...)
अंत में आत्महत्या को नकार देना चाहिए।
