वट वृक्ष
वट वृक्ष
मेरे गांव में एक बरगद का पेड़ है। न जाने कितने बसंत देखे इसने। काका और पिताजी इसकी छांव में खेले। हम जब भी गांव जाते इस पेड़ की छाया में बैठकर जैसे सारी दुनिया की चिंताएं समाप्त हो जाती। कितना सुकून है इसकी छांव में। बच्चे इसमें झूला डालकर झूला करते। पूरा परिवार इसके नीचे एक साथ बैठा होता।
समय के साथ सब अपने रास्ते आगे बढ़ गए। गांव जाना कम हो गया। शहर की व्यस्त जिंदगी में गांव और बरगद का पेड़ पीछे रह गया। दादा जी भी कुछ समय बाद यही आ गए।
आज ऑफिस से आकर थका हुआ अपने कमरे बैठा था अचानक गांव की याद आई और याद आया वो बरगद पेड़ उसकी छांव का सुकून। मैंने सोचा कितने सालों से पेड़ हमारे परिवार को आश्रय दे रहा है। किसने लगाया होगा इसे दादाजी से पूछता हूं।
मुझे सुबह तक की प्रतीक्षा नहीं हुई। रात में ही दादा जी के पास गया और उनसे पूछा दादा जी हमारे गांव के घर में एक बरगद का पेड़ है। आपको याद है उसे किसने लगाया था।
दादा जी बोले आज अचानक उस पेड़ की याद कैसे आ गई।
मैंने उत्तर दिया दादाजी इस बार जब से गांव से आया हूं, रह रह कर उस पेड़ के नीचे बिताए पल याद आते हैं। कितना सुकून कितनी शान्ति है वहां। सारे संसार की चिंताओं से दूर। जैसे एक पिता की अपने पुत्र की सरी चिंताओं को दूर कर देता है। वैसा ही अनुभव होता था उस पेड़ के नीचे।
दादाजी अपने बचपन की यादों में खो गए उनकी आंखों में हल्की सी नमी दिखी वो बोले बेटा याद नहीं वो पेड़ किसने लगाया। मैं जब छोटा था तब भी वो बरगद इतना ही बड़ा था। मैंने अपने पिताजी से भी यही प्रश्न पूछा उन्होंने बताया था कि उनके बचपन से ये ऐसा ही है। जाने कितने पंछी उसकी छांव में पले और दूर चले गए।
अब तो लगता है, जैसे वो हमारे आने की राह देखता हो। कोई आएगा जो उसकी छांव में फिर से विश्राम करेगा। बच्चे उसकी छांव में फिर से खेलेंगे। वो वही खड़ा रहेगा सदियों तक, यही है उसका इंतज़ार सदियों का...