वो कौन थी?
वो कौन थी?
वो कौन थी...जो बेखबर बदहवास सी आते ही टीफिन, टीफिन खोल खोल कर देखती.... छोडती फेंंकती उन्हें जो होते खाली.... टूट पडती उसमें, जिसमेें होता छोडा खाना या यूं कह लिजिये... जूठन... उसे न दिखता अच्छा खराब... न स्वाद...न बेस्वाद का होता उसे ज्ञान वो तो बस खाने में जुट जाती...उसे यह सोचने समझने की क्षणिक भी फुरसत नहीं थी।
मधु उसकी इस क्रिया-कलाप से विचलित हो कहती... रुको रुको मैं तुम्हें खाने को देती हूं तुम वो जूठन मत खाओ...वो सब खराब है ....पर मधु की आवाज मधु तक ही गूंज कर रह जाती और वो तब तक सब चट कर जाती मधु नाक में कपडा लगा आंखें फाड देखती रह जाती.... दुर्गंध सही नहीं जाती...पर वो तृप्त हुए बिना सिर नहीं उठाती..... न ही उसके कान में कोई जूं रेंगती।
न जाने कौन थी गोरी चिट्टी, मांसल बदन ...उसे देख मधु सोचती जाने किसने यह दिन उसे दिखाये किसी ने घर से निकाला या सब्जबाग दिखा कोई गुमराह कर लिया... मकरंद रस पी उसे रास्ते के हवाले छोड दिया... दाने दाने को मोहताज होने के लिए.... गले का फंदा समझ दर दर भटकने के लिये छोड दिया।
निर्मल स्त्री विश्वास में छिपा छल कभी पहचान ही नहीं पाई उस छलिया के गिरफ्त में आकर सब कुछ लुटा बैठी जिस्म की भूख से भी ऊपर पेट की भूख होती है उस भूख ने सडे भोजन की संडाध को भी नहीं पहचाना! वो केवल सरल निर्मल नारी की बदहवास भूख थी....बदहवास भूख थी...!