वो बीते पल
वो बीते पल
सोशल मीडिया फेसबुक पर फ्रेंड रिकवेस्ट की बाढ़ सी आ गई थी.. कुछ सफाई अभियान के दौरान रवीना की निगाह एक जगह टिक सी गई।
कुछ परिचित सी अपरिचित तस्वीर देख सबसे पहले नाम और शहर पढ़ा फिर उसकी टाइम लाइन ओपन कर दी। उसे खुद पर हंसी आ रही थी कि इतने लंबे अंतराल के बाद भी ये कौन सा आकर्षण था जिसने उसे उस तस्वीर पर रोक दिया... प्रौढ़ता में जवानी की छवि तो बिल्कुल नहीं थी पर आँखे आज भी वही थीं।
हाँ, ये जसवंत जाधव की ही फ्रेंड रिकवेस्ट थी ...कोई म्युचुअल फ्रेंड भी नहीं ! फिर कैसे ढूँढ़ी उसने मेरी id ? क्योंकि अब मैं भी रवीना सिंह नहीं रवीना खन्ना थी और सोलह साल की अल्हड़ कमसिन नहीं प्रौढ़ता की दहलीज पर खड़ी महिला थी।
पगला मन बार बार सोलहवें सोपान पर खड़ा होने लगा ... जहाँ सामने की खिड़की से झाँकती वो आँखे उसके दिल को गुदगुदा जातीं या रास्ते पर चलते हुए उसे अपनी पीठ पर भी महसूस होतीं। जहाँ अल्हड़ प्रेम में गिरिफ्तार रवीना को जसवंत के सिवा कुछ भी नज़र नहीं आता था। उसके सारे सपने जसवंत से शुरू और खत्म होते लेकिन धार्मिक रूढ़िवादिता के चलते दोनों ने अलग चलने का फैसला लिया। और चल भी रहे थे पर आज उसकी रिकवेस्ट ने शांत जल में हलचल पैदा कर दी तो क्या जसवंत आज भी उसे ?
उसे किसी शायर की ये पंक्तियां याद आ गईं....बाद मुद्दत के भी कोशिश यूँ जारी है, राख़ के ढेर में दबी ज्यूँ कोई चिंगारी है।
